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पान', फर' और ममी' नामक कविमुक्त उपमान रूपक अलंकार में परिलक्षित है।
इसके अतिरिक्त इस शताब्दि में भव, धर्म तथा चेतन उपमेय के लिए प्रमशः पीजरा', नाव, और ज्योति नामक नवीन उपमान रूपकालंकारामतर्गत प्रष्टव्य हैं।
उन्नीसवीं शताग्दि के पूजा-काम्य कृतियों में अभिव्यक्ति के लिए हदिवड, रूढ़िमुक्त और नबीन उपमानों पर आधारित निरंग रूपकों का मूल्यवान स्थान है। इस शती के उत्कृष्ट पूजाकार वृन्दावन ने भव और
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१. सम्यक्चारित्र रतन समालो, पांच पाप तजि के द्रत पालो।
-श्री चारित्रपूजा, द्यानतराय, सगृहीत ग्रंथ, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह,
राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ १६६ । २. निहवेमुकतिफल देहू मोकों, जोर कर विनती करों ।
-श्री निर्वाण क्षेत्र पूजा, दयानतराय, संग्रहीत ग्रंथ - राजेश नित्य पूजा
पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृ० ३७४ । ३. सहुंशील-लच्छमी एव, छूटों फूलन सो।
-श्री नन्दीश्वरद्वीप पूजा, यानतराय, संगृहीत ग्रंथ-राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ
१७२। ४. करै करम की निरजरा, भव पीजरा विनाशि ।
-श्री दशलक्षण धर्मपूजा, धानतराय, सगृहीतग्रंथ-राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वसं, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६ पृष्ठ
१८६। ५. चानत धरम की नाव बैठो, शिवपुरी किशलात है ।
-श्री रत्नत्रय पूजा, द्यानतराय, संगृहीतपथ - राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ
१६६ । ६. मोह तिमिर हम पास, तुम पं चेतन जोत है।
-श्री बहत सिद्ध चक पूजा भाषा, धानतराय, संगृहीत ग्रंथ-जैनपूजा पाठ संग्रह, प्रकाशक-भागचन्द्र पाटनी, नं० १२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ २३६ ।