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थी नेमिनाथ जिनपूजा में वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार के अभिवसन होते
बीसवीं शती के पूजाकाध्य के कवि जिनेश्वरवास प्रणीत 'श्री बाहुबली स्वामी पूजा' नामक पूजाकृति में वस्तुत्प्रेक्षालकार व्यवहत है।
जन-हिन्दी-पूजा-काव्य के कवियों की हिन्दी-काव्य-कृतियों में उत्कर्ष उत्पन्न करने के उद्दश्य से इसका प्रयोग हुआ है यहाँ उत्प्रेक्षागत वस्तु, हेतु फल नामक प्रभेवों का कोई पृथक रूप से विवेचन करना इन कवियों का अभिप्रेत नहीं रहा है।
उन्नीसवीं शती के पूजाकाव्य के कवि वृन्दावन उत्प्रेक्षाओं के धनी हैं। असमय प्रसंगों को अभिव्यंजना में कवि वृन्दावन को उत्प्रेक्षा करने की अपेक्षा हुई है। इस प्रकार की अभिव्यंजना में कवि वदावन को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। उदाहरण
जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में अठारहवीं शती के कविवर यानतराय पूजा विरचित 'श्री दशलक्षणधर्म" 'श्री बहत् सिद्धचक्र पूजाभाषा' नामक पूजा काव्य कृतियों में उदाहरणालंकार के अपिदर्शन होते हैं। १. मातशिवाहरषी मन में जनु आज प्रसूति जनी महतारी । ___ --श्री नेमिनाथ जिनपूजा, मनरगलाल, सगृहीत नथ-ज्ञानपीठ पूजालि,
अयोध्याप्रसाद गोयलीय, मत्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस,
१६५७, पृष्ठ ३२७ । २. वेडूर जमणि पर्वत मानो नील कुलाचल मथिर जान ।
-श्री बाहुबली स्वामी पूजा, जिनेश्वरदास, सगृहीत नथ, जैनपूजा पाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, न० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७,
पृष्ठ १७१। ३. बहुमतक सडहि मसान माहीं,
काग ज्यों चोंचे भरें। -श्री दश लक्षण धर्मपूजा, द्यानतराय, संगृहीतग्रथ-राजेश नित्यपूजा पाठ सग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६, ष्ठ १८४ । जा पद मांहि सर्व पद छाजे, ज्यो दर्पण प्रतिबिंब विराजे । -श्री बृहत् सिद्धचक्र पूजा भाषा, द्यानतराय, संग्रहीतग्रंथ, जम पूजा पाठ संग्रह, भागबन्द्र पाटनी, नं. ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकता७, पृष्ठ २४ ।