________________
( १ )
rain ! हम सरस भोजन आपके सामने बढ़ाते हैं फलस्वरूप हमें समस्त विषय वासनाओं भोग की इच्छा से निवृति प्राप्त हो ।'
वेध शब्द अपने इसी अभिप्राय को लेकर जैन- हिन्दी-पूजा-काव्य में अठारहवीं शती के पूजाकवि ध्यानतराय प्रणीत 'श्री जीसतीशंकर पूजा' नामक पंचना में व्यवहुत है।" उन्नीसवीं शती के पूजाकवि बख्तावरत्न विरचित 'श्री कुयुनाथ जिनपूजा' नामक कृति में मैबेद्य शब्द परिलक्षित है।' atestent के पूजाकवि बोलतराम विरचित 'भी पावापुर सिद्ध क्षेत्र पूजा' मानक रचना में नवे शब्द इसी अभिप्राय से व्यवहृत है।
दीप - बीप्यते प्रकाश्यते मोहान्धकारं विनश्यति इति बोपः । बोध का अर्थ: लोक में 'दिया' प्रकाश का उपकरण विशेष के लिए व्यवहुत है ।
१. सकल पुद्गल संग विवज्र्ज्जनं, सहज वेतनभाव विलासकं । सरस भोजन नव्य निवेदनात् परम निवृत्ति भाव महं स्पृहे ॥
- जिन पूजा का महत्व, मोहनलाल पारसान, सार्द्धं शताब्दी स्मृति ग्रंथ प्रकाशक- सार्द्धं शताब्दी महोत्सव समिति, १३६, काटन स्ट्रीट, कलकत्ता-७ ६. सन् १६६५, पृष्ठ ५५ ।
२. काम नाग विषधाम नाश को गरुड कह हो ।
छुवा महादव ज्वाल तासु को मेघ लहे हो ||
ॐ ह्रीं विद्यमान विशतितीर्थंकरेभ्यः क्ष ुधारोग विनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ।
- श्री बीसतीर्थ करपूजा, बान्तराय, संगृहीत ग्रंथ-ज्ञानपीठ पूजांजलि भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, १९५७ ई०, पृष्ठ ११३ । ३. पकवान सुकीने तुरत नवीने सितरस भीने मिष्ट महा ।
तुम पद तल धारे नेवज सारे क्ष ुधा निवारे शर्म लहा ॥
श्री कुंथुनाथ जिनपूजा, बख्तावररत्न, संगृहीत - ज्ञानपीठ पूजांजलि, प्रकाशक, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, १९५७ ई०, पृष्ठ ५४३ ।
४. नैवेद्य पावन छुधा मिटावन, सेव्य भावन युक्त किया ।
रस मिष्ट पूरित इष्ट सूरित लेयकर प्रभु हित हिया ॥
ॐ ह्रीं श्री पावापुर सिद्धक्षेत्र भ्यो वीरनाथ जिनेन्द्राय अधारोय विनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ।
"
- श्री पावापुर सिद्धक्ष ेत्र पूजा, दौलतराम, संग्रहीत ग्रंथ जैन पूजापाठ 'संग्रह, प्रकाशक- भागचन्दपाटनी, नं० ६२, मलिनी सेठ रोड, कलकत्ता ७, पृष्ठ १४७ ।