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जिम्मुला' नामक पूजा कृति में पुष्प भब्य उक्त अर्थ में प्रयुक्त है " शती के पूजा रचयिता हीराचन्य रचित 'श्री चतुविंशति तीर्थका पूजा में पुष्प शब्द का प्रयोग द्रष्टव्य है । "
नैवेद्य - निश्चयेन बेद्य गृठ्ठीयम क्षुधा निवारणाय । मैल पदार्थ है जो देवता पर चढ़ाया जाता है। किन्तु जैन बाहलय में विशेष रूप से प्रतीकार्य रूप में प्रचलित है। वहीं आर्ष ग्रन्थों में कान्ति लेख, सम्पलता के लिए यह शब्द व्यवहृत है। जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में क्षुधारोग को शान्त करने के लिए चढ़ाया गया मिष्ठान्न वस्तुतः ने कहलाता है।"
जैन- हिन्दी- पूजा में उल्लिखित है कि समस्त पुद्गल भोग एवं संगोष से मुक्त होने के लिए अपने सहज आमत्स्वभाव का स्वाद लेते रहने के लिए है
१. केवड़ा गुलाब और केतकी चुनायकें ।
areef के समीप काम को नसाइकें ॥
ॐ ह्री श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भजन्मतपोज्ञान निर्वाणपंचकल्याणक प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
- श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा, बख्तावररत्न, संग्रहीत ग्रंथ - ज्ञानपीठ पूजांजलि, प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, १६५७ ई० पू० ३७२ ।
२. चँप चमेली है जूही ताजा, लायो प्रभु तुम पूजन काजा । भेंट धरूं मैं तुम जिनराई । कामबाण विध्वंस कराई ॥
ॐ ह्रीं ऋषभादि महावीर पर्यन्त चतुविशति तीर्थंकरेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री चतुविशति तीर्थंकर समुच्चयपूजा, हीराचन्द संग्रहीत नित्य नियम विशेष पूजन संग्रह, प्रकाशक- ब्र० पतासीबाई जैन, गया (बिहार), पृष्ठ ७२ ।
३. सागार धर्मामृत, आशाधर, प्रकाशक- मूलचंद किशनदास कापड़िया, सूरत, प्रथम संस्करण, बीर सं० २४४१, श्लोकांक ३०-३१, पृ० १०१-१०५ । ४. वसुनंदि श्रावकाचार, ४८६, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग १, जिनेन्द्र वर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ, २०२६, पृष्ठ ७६