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*न-हिन्दी पूमा काम में इस सब का प्रयोग प्रतीकार्य में हुआ है। मोहा
कार को मात करने लिए दीप रूपी जान का अर्थ भावायक है। भाषि बीच मिल यात्मबोध के विकास के लिए जिनमनिर में घुस बीपक मलाये, पलवल उनके मन मभिर में सद्गुण (महिला, संयम, इच्छारोध, तर),सीबी का प्रकाश फैल जाय।' पूजा में भावावक सामग्री में मोले (नारिवल) केत-पाकल 'बीप' का प्रतीकार्ष लेकर दीप शब्द प्रयोग में माता है।
अठारहवीं सती पूजाकार पानतराय में भी निर्वाणक्षेत्रपूजा' नामक पूजाति में 'बीप' शब्द का उक्त अर्थ के लिए व्यवहार किया है।' उन्नीसवीं शती के पूमा रचयिता मल्लगी रचित 'बी समावाणी पूजा' मामक रचना में 'बीप' शम्ब इसी अभिप्राय से ग्रहीत है। बीसवीं शती
१. भविक निर्मल बोध विकाशकं, जिनगृहे शुभ दीपक दीपनं ।
सुगुण राग विशुद्ध समम्वितं, दधतुभाव विकाशकृते जन्यः ।। -जिनपूजा का महत्व, श्री मोहनलाल पारसान, सावं सताब्दी स्मृति पंच, प्रकाशक-श्री जैन श्वेताम्बर पंचायती मंदिर, १३६, काटन स्ट्रीट,.
कलकत्ता-७, संस्करण १९६५, पृष्ठ ५५ । २. सागार धर्मामृत, ३०-३१, आशाधर, प्रकाशक-मूलचन्द किशनदास
कापटिया, सूरत, प्रथम संस्करण, वीर सं० २४४१. श्लोकांक ३०-३१,
पृष्ठ १०१.१०५। ३. दीपक प्रकाश उजास उज्ज्वल, तिमिर सेती नहि डरों।
संशय विमोह विभरम तमहर, जोरकर विनती करों। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विशति तीर्य कर निर्वाण संभ्यो धूपं निपामीति
स्वाहा।
-श्री निर्वाणक्षेत्र पूजा, दयानतराय; संग्रहीत प्रप-शानपीठ पूजांजलि, प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, १९५७ १०,
पृष्ठ ३६६। ४. हाटकमय दीपक रची, वाति कपूर सुधार ।
शोधित वृत कर पूजिये मोह-तिमिर निरवार । ॐ ह्रीं अष्टांग सम्यग्दर्शनाय अष्टविषसम्यग्ज्ञानायत्रयोवा विध सम्पद पारिवाय रलयाय मोहान्धकार विनायनाय दीपं निवपामोति स्वाहा। -श्री क्षमावाणी पूजा, मल्लजी, संग्रहीत प्रष-मानपीठ पूजापलि, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुमा रोड, बनारस, १९५७१०, पृष्ठ ४.४।