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सहस्रनाम का अर्थ
उदक चन्दन तंबुल पुष्पकैश्च सुदीपसुधूप फलार्थकः । धवल मंगलगान रवाकुले, जिनगृहे जिननाथ महं यजे ॥ ॐ ह्रीं श्री भगवज्जिनसहस्रनामेभ्योऽष्यं निर्वपामीति स्वाहा ।"
स्वस्तिमंगल वाचन
श्री मज्जिनेन्द्रमभिद्यजगत्त्रयेशं,
स्याद्वावनायकमनन्त चतुष्टयाई ।
श्रीमूल संधसुदृशां सुकृतं कहेतु
जैनेन्द्र-यज्ञ - विधिरेष भयाभ्यधायि ॥ "
( यह मध्य में चिन्हित स्वास्तिक पर पुष्पांजलि क्षेपण किया जायगा ) जिनेन्द्र स्वस्ति मंगल
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श्री वृषभो नः स्वस्ति, स्वस्ति श्री अजित:, भी सम्भव: स्वस्ति, स्वस्ति श्री अभिनन्दनः ॥ श्री सुमतिः स्वस्ति, स्वस्ति श्री पद्मप्रभः श्री सुपार्श्वः स्वस्ति, स्वस्ति श्री चन्द्रप्रभः ॥ भी पुष्पवन्तः स्वस्ति, स्वस्ति श्री शीतलः, श्री श्रेयांसः स्वस्ति, स्वस्ति श्री वासुपूज्यः । श्री विमल: स्वस्ति, स्वस्ति श्री अनन्तः भी धर्मः स्वस्ति, स्वस्ति भी शान्तिः ॥ श्री कुंभुः स्वस्ति, स्वस्ति श्री अरनाथः, श्री मल्लिः स्वस्ति, स्वस्ति भी मुनिसुव्रतः । श्री नमिः स्वस्ति, स्वस्ति श्री नेमिनाथः, श्री पार्श्व: स्वस्नि, स्वस्ति श्री व मानः ॥
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मध्य चिह्नित स्वस्तिक पर पुष्पांजलि का क्षेपण कीजिये ।
१. राजेश नित्यपूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६ ६०, पृष्ठ ३४ ।
२. स्वस्तिमंगल, राजेश नित्यपूजापाठ संग्रह, प्रकाशक - राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६ ई०, प्रथम संस्करण, पृष्ठ ३५-३६ ।
३. जैन पूजापाठ संग्रह, प्रकाशक- भागवन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १४ ।