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दशदिक्पालों के अर्ध
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frentप्रपाद्भुतकेबलौघाः स्फुरन्ममः पर्ययशुद्धबोधाः । विध्यावधिज्ञानबलप्रबोधाः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयोनः ॥
( यहां से प्रत्येक श्लोक के अन्त में पुष्पांजलि मध्यस्थ चिहि नत स्वस्तिक के चारों मोर क्षेपण करना चाहिए।) क्रमश: १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ६, ६, १०. बिन्दुओं पर क्षपण करना चाहिये ।
कोष्ठस्थ धान्योपममेक बीजं संभिन्न संधी-पदानुसारी । agविधं बुद्धि बलं दधानाः स्वस्ति कियासुः परमर्षयोनः ॥ संस्पर्शनं संभवर्ण च दूरादास्वादन - प्राण-विलोकनानि । दिव्यान्मतिज्ञानबलाद्वहन्तः स्वस्ति किमासुः परमर्षयो नः ॥ ( मध्यस्थ चिह्नित स्वस्तिक पर पुष्पांजलि क्षेपण कीजिए ) देवशास्त्रगुरू की पूजन -
देव-शास्त्र-गुरुपूजा का विधिवत पूजन करना चाहिए ।" टिप्पणी- यदि पुजारी- भक्त के पास समयाभाव है तो पूर्ण पूजन करने की अपेक्षा उनके निम्न अर्धी को बढ़ाना चाहिये ये अर्ध श्लोक तथा मंत्र निम्न प्रकार हैं ।
(१) बीस तीर्थ कर के अर्ध
उदक चंदन तंडुल पुष्प कैश्चरसुदीपसुधूप फलार्थकः । धवल मंगल गान रवाकुले जिनगृहे जिनराज महं यजे ॥
ॐ ह्रीं श्री समंधर-युग्मंधर- बाहु-सुबाहु-संजात-स्वयंप्रभ-ऋवमानन अनन्त वीर्यसूर्यप्रभ विशालकीर्ति-वज्रधर- चन्द्रानन-चंद्र बाहु-मुजंगम-ईश्वर-मेमिप्रभवीरवेण - महाभव-देवयशो जितनोति विशतिविद्यमान तीर्थ करेभ्योअधं निर्वपामीति स्वाहा।*
(नीचे वाले स्वस्तिक चिह्न पर ही अर्ध चढ़ाना चाहिये)
१. जैन पूजापाठ सग्रह, प्रकाशक - भागचन्द पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७ पृष्ठ १४ ।
२. जैन पूजापाठ संग्रह, भागबन्द पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १५ ।
३. द्यानतराय, श्री देवशास्त्र गुरूपूजा, संगृहीत ग्रंथ, जैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७ पृष्ठ १६-२१ । ४ जैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ ३६ ।