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विनवपाठका प्रवाचनसस्वर विनयपाठ का पाचन करना होता है, यथा
बह विधि जागे होयके, प्रथम पड़े को पाठ। धन्य जिनेश्वर देव तुम नारी कर्म माठ॥ मनन्त चतुष्टय के धन्गे, तुमही हो सिरताज ।
मुक्तिधू के कंत तुम, तीन भुवन के राज॥' मध्यस्थ चिहित स्वास्तिक पर पुष्पों को बढ़ाना चाहिए तथा इसके पश्चात् निम्नाटक का शुट उच्चारण करना चाहिये
जय जय जय । नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु । णमोअरिहन्ताणं, णमोसिवाणं, नमो आइरियाणं,
जमो उवमायागं, जमो लोए सम्बसाहणं ॥ 'ॐ ह्रीं अनादि मूलमन्त्रेभ्यो नमः' ऐसा कहकर पुष्पों का क्षेपण करना
चत्तारिमंगल-अरिहन्ता मंगल, सिवा मंगलं, साहू मंगलं केवलपणतो धम्मोमंगलं । चत्तारिलोगुतमा-अरिहन्तालोगुत्तमा, सिजालोगुत्तमा, साहू लोगुतमा, केवलियननो धम्मोलोगुत्तमो।
तारिसरणं पबज्जामि, अरिहन्ते सरणं पवग्जामि, सिसरणं पवजासि साहू सरणं पवजामि ।
केवलि पन्णत धम्म सरणं पबन्जामि॥ ओं नमोहंत स्वाहा कहकर पुष्पांजलि क्षेपण करना चाहिए।'
अपवित्रः पवित्रो वा सुस्थितो दुःस्थितोऽपि वा। ध्यायेत्पंच-नमस्कारं सर्व-पापः प्रमुच्यते ॥ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत्परमात्मानं सबाहयाभ्यन्तरे शुचिः।।
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१ राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्स, हरिनगर, अलीगढ़,
प्रपम संस्करण १६७६, पृष्ठ ३०-३२ । बनपूजापाठ संग्रह, प्रकाशक-मागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड,
कलकत्ता-७, पृष्ठ ११ । ३. रावेज नित्यपूजापाठ संग्रह, प्रकाशक राजेन्द्र मेटिल पसं, हरिनगर,
बलीगढ़, प्रथम संस्करण १९७६, पृष्ठ ३३ ।