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बाल में इन स्थापनाओं को बड़ी सावधानी से रखना करनी चाहिये इसे सुविधानुसार हम निम्न फलक में निम्न प्रकार व्यक्त कर सकते हैं, यथा
सिद्ध स्थली
筑
२०
दर्शन ज्ञान चारित्र्य
५०
ব
१०
मोक्ष स्थली
४ 和
अकृत्रिम चैत्यालय
(२)
६०
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26
(शास्त्र) १०.
चौबीस तीर्थकर
अ
( बीस तीर्थंकर पीठिका) (१)
(गुरु)
(५)
(पूजा वाली वेदी पर विराजमान प्रभु पीठिका)
पुजारी पर चन्दन- चर्चन -
पूजा करने वाले भक्तपुजारी को अपने शारीरिक अवयवों पर थालिका में स्वस्तिक चिह्नों की संरचना के पश्चात् चन्दन का चर्चन करना चाहिये । सबसे पहिले कलाई स्थल पर चन्दन धारो, भुजाकेन्द्र पर चन्दन-बिन्दु, कर्णaafeet पर चम्वन-बिन्दु, कण्ठ-प्रदेश पर वम्बन-बिन्दु, वक्ष स्थल पर arat - बिन्दु तथा नाभि-प्रदेश में चन्दन-बिन्दु का लेपन करना चाहिये । यदि पुजारी जनेऊधारी है तो उसे जनेऊ पर भी चन्दन का चर्चन करना अपेक्षित है । अन्त में पुजारी अपने ललाट पर चन्द्राकार तिलक चर्चित करता है। पूजन का समारम्भ
प्रथमतः पुजारी को लगासन में सावधानपूर्वक नौ बार णमोकार मंत्र का शुद्ध उच्चारण कर दर्शन, ज्ञान और चारित्र की तीन बिन्दु स्थलियों पर नौ-नौ पुरुषों को क्रमश: इस प्रकार चढ़ाना चाहिये कि वे एक दूसरे से सम्मिलित न होने पाये ।