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________________ परिशिष्ट 256 188 25, विजयेन्द्रसूरि 75 वीरनन्दि 7, 125 विजय सत्थ 221 वीरभद्र विद्यानन्द 2, 16, 11, 117, 180 वीरसेन 104 112, 154, 164, 215, 216, 217 166, 181, 203 विद्यानन्दि (देवेन्द्रकीर्ति शिष्य) 12, वीरसेन (भट्टारक) 182, 185 14, 15, 16, 27, 208, 201, वीराचार्य (वीरसेन) 111 211, 212, 213, 214, 215, बोरु कवि (पुत्र सा. तोतू) 142 216, 217, 218, वोसरि (भट्ट) 162 विद्यानन्दि (गुरु श्रुतसागर) 20, 71 शांतिषण 4, 103, 27, 26, 146, 152, शिवकोटि, 30, 112, 127, 212 विद्याभूषण 83, 14, 15, 16, 176, 178, 160, शिवानन्द मुनींद्र विद्य च्चर 101 शिवायन 112 विनयचन्द्र (पण्डित) 1.25 शिवाराम (पंडित) (पुत्र पुषद वनिप) 81 विनयसागर (भ. शिवाभिराम 118 ___ विश्वभूषणशिष्य ) 140 शील (ब्रह्म) 171 विनायकानन्दि 154 शुभकीर्ति विमलसेन 83, 14, 15, 16, 178, शुभचन्द्र 16, 20, 51, 53, 55, विरुवः (खुल्लक) 171, 177, 222, 224 विशाख (विशाखाचार्य) 48 शुभचन्द्र भट्टारक 40, 42 विशाखाचार्य शुभचन्द्रदेव 45, 52, 88, 168 विशालकीर्ति 12,83, 64, 65, 16, शुभचन्द्रसूरि 24, 162, विशालकीर्ति (पण्डितदेव) 200 शुभेन्दु (शुभचन्द्र) विश्वभूषण (भट्टारक) 34, 140 शुभतुङ्गदेव 195 विश्वसेन मुनि 178, 221 श्रीचन्द्रमुनि (नंद्याचार्यशिप्य) विश्वसेन 83, 14, 15, 16, श्रीदेव वीरचन्द्र (भट्टारक) 43, 155, 156, श्रीधर 181, श्रीनन्दि मुनि 12 43
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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