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________________ ज्वालिनीकल्प-प्रशस्ति तेनैषा कविचक्रिणा विरचिता श्रीपंचमीसत्कथा - भव्याना दुरितोषनाशनकरी संसारविच्छेदिनी ॥५॥ स्पष्ट श्रीकविचक्रवर्तिगणिना भव्याजधर्मा शुना ग्रंथी पंचशती मया विरचिता विद्वजनाना प्रिया । ता भक्त्या विलिखंति चारुवचनावणयंत्यादरा द्ये शृण्वंति मुदा सदा सहृदयास्ते याति मुक्तिश्रियं ॥६॥ इति नागकुमारचरित्रं समाप्तम् । ११. ज्वालिनीकल्प ( इन्द्रमन्दियोगीन्द्र ) आदिभाग: चन्द्रप्रभजिननाथ चन्द्रप्रभमिन्द्रनंदिमहिमानम् । ज्वालामालिन्यचित-चरणसरोजद्वयं वंदे ॥१॥ कुमुददलधवलगात्रा महिषमहावाहनोज्वलाभरणा । मा पातु वन्हिदेवी ज्यालामालाकरालागी ॥२॥ जयताद्देवी ज्वालामालिन्युद्यस्त्रिशूल-पाश-झषकोदण्ड-काण्ड-फल-वरद-चक्रचिन्होज्वलाऽष्टभुजा ॥३॥ अहे सिद्धाचार्योपाध्यायान् सकलसाधुमुनिमुख्यान् । प्रणिपत्य मुहुर्मुहुरपि वक्ष्येऽहं ज्वालिनीकल्पं ॥४॥ दक्षिणदेशे मलये हेमप्रामे मुनिमहात्मासीत् । हेलाचार्यो नान्ना द्रविडगणाधीश्वरो धीमान् ॥५॥ तच्छिष्या कमलश्रीः श्रुतदेवी वा समस्तशास्त्रज्ञा। सा ब्रह्मराक्षसेन गृहिता रौद्रेण कर्मवशात् ॥६॥ *-* इन चिन्होंके अन्तर्गत यह षट्पद्यात्मक अन्तका भाग 'श्राराजैनसिद्धान्तभवन'की ताडपत्रीय दो प्रतियों परसे लिया गया है, अन्य कितनी ही प्रतियोमें यह नही पाया जाता–छूटा हुआ है।
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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