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परिचित थे और उनकी कीर्ति समस्त कविकुलोंके मान सन्मान और दानसे लोकमें व्याप्त हो रही थी । और मेवाड़ देशमें प्रतिष्ठित भगवान पार्श्वनाथ जिनके यात्रामहोत्सवसे उनका श्रद्भुत यश अखिल विश्वमें विस्तृत हो गया था | नेमकुमारने हडपुरमें भगवान नेमिनाथका और नलोटकपुर में वाईस देवकुलका सहित भगवान आदिनाथका विशाल मन्दिर बनवाया था x | नेमकुमार पिताका नाम 'मक्कलप' और माताका नाम महादेवी था, इनके राहड और नेमिकुमार नामके दो पुत्र थे, जिनमें नेमिकुमार लघु और राह ज्येष्ठ थे | नेमकुमार अपने ज्येष्ठ भ्राता राहडके परम भक्त थे और उन्हें श्रादर तथा प्रेमकी दृष्टिसे देखते थे । राहडने भी उसी नगरमें भगarr दिनाथ मन्दिरकी दक्षिण दिशामें वाईस जिन-मन्दिर बनवाये थे, जिससे उनका यशरूपी चन्द्रमा जगत में पूर्ण हो गया था—याप्त हो
गया था + ।
afa वाग्भट्ट भक्तिरसके श्रद्वितीय प्रेमी थे, उनकी स्वोपज्ञ काव्यानुशासनवृत्ति आदिनाथ नेमिनाथ और भगवान पार्श्वनाथका स्तवन किया
श्रीमन्नेमि कुमार - सूरिरखिलप्रज्ञालुचूड़ामणिः ।
arooran शामनं वरमिदं चक्रे कविर्वाग्भटः ॥
छन्दोऽशासन की अन्तिम प्रशस्ति में भी इस पद्यके ऊपर के तीन चरण ज्योंके त्यों पाये जाते हैं, सिर्फ चतुर्थ चरण बदला हुआ है, जो इस प्रकार है
'छन्द शास्त्रमिदं चकार सुधियामानन्दकृद्वाग्भट.' ।
* जान पड़ता है कि 'राहडपुर' मेवाडदेशमे ही कहीं नेमिकुमार के ज्येष्ट भ्राता Resh नामसे बसाया गया होगा ।
x देखो, काव्यानुशासनटोकाकी उत्थानिका पृष्ठ १ ।
+ नाभेयचैत्यसदने दिशि दक्षिणस्यां मन्ये निजाग्रजवरप्रभुराहडस्य,
द्वाविंशति विदधता जिनमन्दिराणि । पूर्णीकृतो जगति येन यशः शशांकः । --- काव्यानुशाशन पृष्ठ ३४