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१४२वीं प्रशस्ति 'रामचरित्र' की है जिसके कर्ता ब्रह्मजिनदास हैं । जिनका परिचय 9वीं प्रशस्तिमं दिया गया है ।
१४३ से १६६वीं तककी २४ प्रशस्तियों, ज्येष्ट जिनवरकथा, रविचतकथा, सप्तपरमस्थानव्रतकथा मुकुटसप्तमीकथा, अक्षयनिधि व्रतकथा, षोडशकारणकथा, मेघमालाव्रतकथा, चन्द्रनषष्ठी कथा, लधिविधानकथा, पुरन्दरविधानकथा, दशलाक्षणीब्रतकथा, पुष्पाजलिव्रतकथा, श्राकाशपंचमीकथा, मुक्तावलीव्रतकथा, दुमीकथा, सुगन्धदशमीकथा, श्रवणद्वादशीकथा, रत्नअनन्तव्रतकथा, अशोक रोहिणीकथा, तपोल क्षणपंक्रिकथा, मेरुपक्रिकथा, विमानपक्रिकथा, और पल्लविधानकथा की हैं। जिनके कर्ता ब्रह्मश्रुतसागर 'हैं, जिनका परिचय १०वीं प्रशस्तिमें दिया गया है ।
त्रयव्रतकथा.
१६७वीं प्रशस्ति 'छन्दोऽनुशासनको है जिसके कर्ता कवि वाग्भट x हैं जो नेमकुमारके पुत्र थेः व्याकरण, छन्द, अलंकार, काव्य, नाटक, चम्पू और साहित्य मर्मज्ञ थे कालीदास, दण्डी, और वामन आदि विद्वानोंके काव्य-ग्रन्थों खूब परिचित थे और अपने समय के अखिल प्रज्ञालुत्रोंमें चूड़ामणि थे, तथा नूतन काव्यरचना करनेमें दक्ष थे। इन्होंने अपने पिता नेमकुमारको महान् विद्वान् धर्मात्मा और यशस्वी बतलाया है और लिखा है कि ये कान्तेय कुलरूपी कमलोंको विकसित करने वाले अद्वितीय भास्कर थे और सकल शास्त्रों में पारङ्गत तथा सम्पूर्ण लिपि भाषाओंसे
x वाग्भट नामके अनेक विद्वान हुए है। उनमें श्रष्टाङ्गहृदय नामक वैद्यक ग्रन्थकर्ता वाग्भट सिंहगुप्तके पुत्र और सिन्धुदेशके निवासी थे । निर्माण काव्य कर्ता वाग्भट प्राग्वाट या पोरवाड़वंशके भूषण तथा छresh पुत्र थे । और वाग्भट्टालङ्कार नामक ग्रन्थके कर्ता वाग्भट सोमपुत्र थे । इनके अतिरिक्त वाग्भट नामके एक चतुर्थ विद्वानका परिचय ऊपर दिया गया है।
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* नव्यानेक महाप्रबन्धरचनाचातुर्यविस्फूर्जित
स्फारोदारयशःप्रचारसततब्याकीर्णविश्वत्रयः ।