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चरित्र चित्रण करते हुए कविने उक्त ग्रन्थके तीसरे आश्वासमें राजनीतिका विशद विवेचन किया है । परन्तु राजनीतिकी वह कठोर नीरसता, कवित्वकी कमनीयता और सरसताके कारण ग्रन्थमें कहीं भी प्रतीत नहीं होती और उससे प्राचार्य सोमदेवकी विशाल प्रज्ञा एवं प्रांजल प्रतिभाका सहजही पता चल जाता है ।
सोमदेवाचार्य इस समय तीन ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, नीतिवाक्यामृत, यशस्तिasaम्पू और अध्यात्मतरंगिणी । इनके अतिरिक्त नीतिवाक्यामृतकी प्रशस्तिसे तीन ग्रन्थोंके रचे जानेका और भी पता चलता है— युक्तिचिंतामणि, त्रिवर्गमहेन्द्रमातलिसंजल्प और परणवतिप्रकरण । इसके सिवाय, शकसंवत् के दानपत्रमें श्राचार्य सोमदेवके दो ग्रन्थोंका उल्लेख और भी है जिसमें उन्हें 'स्याद्वादोपनिषत्' और अनेक सुभाषितोंका भी कर्ता बतलाया है । परन्तु खेद है कि ये पांचों ही ग्रन्थ अभी तक अनुपलब्ध है सम्भव है अन्वेषण करने पर इनमें से कोई ग्रन्थ उपलब्ध हो जाय । ऊपर उल्लिखित उन आठ ग्रन्थोंके अतिरिक्त उन्होंने और किन ग्रन्थोंकी रचना की है यह कुछ ज्ञात नहीं होता ।
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प्राचार्य सोमदेव इस अध्यात्मतरंगिणी ग्रन्थ पर एक संस्कृत टीका भी उपलब्ध है, जिसके कर्ता मुनि गणधरकीर्ति है । टीकामें पद्य गत वाक्यों एवं शब्दोंक अर्थके साथ-साथ कहीं-कहीं उसके विषयको भी स्पष्ट किया गया है। विषयको स्पष्ट करते हुए भी कहीं कहीं प्रमाणरूपमें समन्तभद्र, अकलंक और विद्यानंद आदि श्राचार्यों के नामों तथा ग्रन्थोंका उल्लेख किया गया है, टीका अपने विषयको स्पष्ट करनेमें समर्थ है। इस टीकाकी इस समय दो प्रतियां उपलब्ध हैं, एक ऐलक पन्नालाल दिगंबर जैन सरस्वती भवन झालरापाटनमें और दूसरी पाटनके श्वेताम्बरीय शास्त्रभडारमें, परन्तु वहाँ वह खण्डित रूपमें पाई जाती है-उसकी श्रादि अन्त प्रशस्ति तो खण्डित है ही । परन्तु ऐ० पन्नालाल दि० जैन सरस्वतीभवन झालरापाटनको प्रति अपने में परिपूर्ण है । यह प्रति संवत् १५३३