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और नेमि देवक शिष्य थे । सोमदेवने अपना यशस्तिलक चम्पू नामका काव्य ग्रन्थ बनाकर उस समय समाप्त किया था, जब शक सम्वत् ८८१ (वि० सं० १०१६ ) में सिद्धार्थ संवत्सरान्तर्गत चैत्रशुक्ला त्रयोदशीके दिन, श्रीकृष्णदेव (तृतीय), जो राष्ट्रकूट वंशके राजा अमोघवर्षके तृतीय पुत्र थे, जिनका दूसरा नाम 'अकालवर्ष' था, पाण्ड्य, सिंहल, चोल और चेर श्रादि राजाको जीतकर मेल्पाटी (मेलाड़ि नामक गाँव) के सेना शिविरमें विद्यमान थे। उस समय उनके चरणकमलोपजीवी सामन्त बहिगकी जो चालुक्यवंशीय राजा अरिकेसरी प्रथमके पुत्र थे-गंगधारा नगरीमें उक्त ग्रंथ समाप्त हुआ था। शक सम्वत् वि० स० १०२३) के अरिकेसरी वाले दानपत्रसे, जो उनके पिता aferवके बनवाए हुए शुभधाम जिनालयके लिए श्राचार्य सोमदेवको दिया गया था । उससे यह स्पष्ट है कि यशस्तिलकचम्पूकी रचना इस ताम्रपत्र से सात वर्ष पूर्व हुई हैx |
यहाँ पर यह जान लेना श्रावश्यक है कि जैन समाजके दिगम्बर श्वेताम्बर विभागोंमेंसे श्वेताम्बर समाजमें राजनीतिपर सोमदेवके 'नीतिवाक्यामृत' जैसा राजनीतिका कोई महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा गया हो यह ज्ञात नहीं होता, पर दिगम्बर समाजमें राजनीति पर सोमदेवाचार्यका 'नीतिवाक्यामृत तो प्रसिद्ध ही है । परन्तु यशस्तिलकचम्पूमें राजा यशोधरका
& शकनृपकालातीतसंवत्सरशतेष्वष्टस्वे काशीत्यधिकेषु गतेषु (८८१) सिद्धार्थसंवत्सरान्तर्गत चैत्रमास- मदनत्रयोदश्यां पाण्ड्य - सिंहल - चोलचेरमप्रभृतीन्महीपतीन्प्रसाध्य मेलपाटी प्रवर्धमानराज्यप्रभावे सति तत्पादपद्मोपजीविनः समधिगत पञ्चमहाशब्दमहासामन्ताधिपतेश्चालुक्यकुलजन्मनः सामन्तचूडामणेः श्रीमदरिकेसरिणः प्रथमपुत्रस्य श्रीमद्वद्यगराजस्य लक्ष्मीप्रवर्धमान वसुधारायां गङ्गधारायां विनिर्मापितमिदं काव्यमिति ।
---यशस्तिलकचम्पू प्रशस्ति x देखो, एपिग्राफिका इंडिका पृष्ठ २८१ में प्रकाशित करहाड ताम्रपत्र |