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पराजित किया था । 'धूर्जटि' का अर्थ महादेव भी होता है अतः यह संभव प्रतीत होता है कि यह महादेव वही हों जिनका उल्लेख टीकामें किया गया है ।
यदि उक्त दामनन्दी शिलालेख-गत ही हैं जिसकी बहुत कुछ सम्भाना है तो इनका समय श्राचार्य प्रभाचन्द्रके समकक्ष विक्रमको ११ वीं शताब्दी होना चाहिये और इनके शिष्य भट्टबोसरिका विक्रम की १२ वीं शताब्दीका पूर्वार्ध अथवा दस-पांच वर्ष पीछेका हो सकता है। क्योंकि प्रभाचन्द्र का समय १२ वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक पहुंचता है ।
१३१वीं प्रशस्ति 'अध्यात्म तरंगिणी टोका' की है, जिसके कर्ता गिधरकीर्ति है । अध्यात्म तरंगिणी नामक संस्कृत भाषाका एक छोटा सा ग्रन्थ है जिसकी श्लोक संख्या चालीस है । इस ग्रन्थका नाम बम्बईके ऐ० पन्नालाल डि० जैन सरस्वती भवनकी प्रतिमें, तथा श्री महावीरजी शास्त्र भण्डारकी प्रतिमें भी योगमार्ग' दिया हुआ है। चूंकि ग्रन्थमें ' योगमार्ग' और योगीका स्वरूप बतलाते हुये श्रात्म-विकासको चर्चा की गई है। इस कारण ग्रन्थका यह नाम भी सार्थक जान पड़ता है। इस अन्य कर्ता हैं प्राचार्य सोमदेव । यद्यपि सोमदेव नामके अनेक विद्वान हो गए हैं; परन्तु प्रस्तुत सोमदेव उन सबसे प्राचीन प्रधान और लोकप्रसिद्ध विद्वान थे । सोमदेवकी उपलब्ध कृतियाँ उनके महान पाण्डित्यकी निदर्शक हैं । संस्कृत भाषा पर उनका असाधारण अधिकार था, केवल काव्यमर्मज्ञ ही न थे; किन्तु राजनीतिके प्रकाण्ड पण्डित थे । वे भारतीय काव्य-प्रन्थोंके विशिष्ट अध्येता थे। दर्शनशास्त्रोंके मर्मज्ञ और व्याकरण शास्त्र अच्छे विद्वान थे उनकी वाणीमें प्रोज, भाषामें सौष्ठवता और काव्य-कलामें दक्षता तथा रचनामें प्रसाद और गाम्भीर्य है । सोमदेवकी सूक्तियाँ हृदयहारिणी थीं। इन्हीं सब कारणोंसे उस समयके विद्वानोंमें श्राचार्य सोमदेवका उल्लेखनीय स्थान था ।
आचार्य सोमदेव 'गौड़संघ' के विद्वान आचार्य यशोधरदेवके प्रशिष्य