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जैनधर्म
लगा लेते थे पीछे सफेद वस्त्र पहनने लगे । फिर जिन मूर्तियों में भी मँगोटेका चिह्न बनाया जाने लगा। उसके बाद उन्हें वस्त्र - आभूषणोंते जानेकी प्रथा चलाई गई। महावीरके निर्वाणते लगभग एक हजार के पश्चात् साबुओको स्मृतिके आवारपर ग्यारह मंकोका संकलन करके उन्हें सुव्यवस्थित किया गया और फिर उन्हें लिपिवद्ध किया गया। इन आगमोंको दिगम्बर सम्प्रदाय नही मानता ।
श्वेताम्बर सम्प्रदाय मानता है कि स्त्रीको भी मोक्ष हो सकता है तथा जीवन्मुक्त केवली भोजन ग्रहण करते हैं । दिगम्बर सम्प्रदाय इन दोनों सिद्धान्तों को भी स्वीकार नही करता । दिगम्वर और खेताम्वर सम्प्रदायमें इन्ही तीनों सिद्धान्तोंको लेकर मुख्य भेद है । संक्षेपमें कुछ उल्लेखनीय भेद निम्न प्रकार है
१. केवलीका कवलाहार
२. केवलीका नीहार ।
३. स्त्री मुक्ति ।
४ शूद्र मुक्ति ।
५. वस्त्र सहित मुक्ति |
६. गृहस्थवेषमे मुक्ति ।
७. अलंकार और कछोटेवाली प्रतिमाका पूजन । ८. मुनियोंके १४ उपकरण ।
६. तीर्थंकर मल्लिनाथका स्त्री होना ।
१०. ग्यारह अंगों की मौजूदगी ।
११. भरत चक्रवर्तीको अपने भवनमें केवल ज्ञानकी प्राप्ति ।
१२. शूद्रके घरसे मुनि आहार ले सके ।
१३. महावीरका गर्भहरण ।
१४. महावीर स्वामीको तेजोलेश्यासे उपसर्ग 1
१५. महावीर विवाह, कन्या जन्म | १६. तीर्थंकरके कन्धेपर देवदूष्य वस्त्र ।
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