________________
सामाजिक रूप
२८७.
तारणपन्थ परवार जातिके एक व्यक्तिने जो वादको तारणतरण स्वामीके नामसे प्रसिद्ध हुए, ईसाकी पन्द्रहवी शताब्दीके अन्तमे इस पन्थको जन्म दिया था। सन् १५१५ में ग्वालियर स्टेटके मल्हारगढ नामक स्थानमे । इनका स्वर्गवास हुआ। उस स्थानपर उनकी समाधि वनी है और उसे नशियांजी कहते है। यह तारणपथियोंका तीर्थस्थान माना जाता है। यह पन्थ मूर्ति पूजाका विरोधी है। इनके भी चैत्यालय होते है, किन्तु . उनमे शास्त्र विराजमान रहते है और उन्हीकी पूजा की जाती है किन्तु द्रव्य नही चढ़ाया जाता । तारण स्वामीने कुछ ग्रन्थ भी बनाये थे। इनके सिवा दिगम्बर आचार्योके बनाये हुए ग्रन्थोंको भी तारणपन्थी मानते है। इस पन्यमें अच्छे धनिक और प्रतिष्ठित व्यक्ति मौजूद है। इस पन्थके अनुयायियोंकी सख्या दस हजारके लगभग बतलाई जाती है, और वे मध्यप्रान्तमे बसते है।
२ श्वेताम्बर सम्प्रदाय - यह पहले लिख आये है कि साधुओंके वस्त्र परिधानको लेकर ही। दिगम्बर और श्वेताम्बर भेदकी सृष्टि हुई थी। अत. आजके श्वेताम्बर साधु श्वेत वस्त्र धारण करते है। उनके पास चौदह उपकरण होते है१ पात्र, २ पात्रबन्ध, ३ पात्र स्थापन, ४ पात्र प्रमाणनिका, ५ पटल, ६ रजस्त्राण, ७ गुच्छक, ८-९ दो चादरे, १० ऊनी वस्त्र (कम्वल), ११ रजोहरण, १२ मुखवस्त्र, १३ मात्रक, १४ चोल पट्टक। इनके सिवा वे अपने हाथमे एक लम्वा दण्ड भी लिये रहते है। पहले वे भी नग्न ही. रहते थे। बादको वस्त्र स्वीकार कर लेनेपर भी विक्रमकी सातवी आठवी शताब्दीतक कारण पड़नेपर ही वे वस्त्र धारण करते थे और वह भी केवल कटिवस्त्र । विक्रमकी आठवी शतीके श्वेताम्बराचार्य हरिभद्रसूरिने अपने संबोधप्रकरणमें अपने समयके साधुओंका वर्णन करते हुए लिखा है कि वे विना कारण भी कटिवस्त्र वाँघते है। और उन्हे क्लीब-कायर कहा है। इस प्रकार पहले वे कारण पड़नेपर लंगोटी