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________________ जैन कला और पुरातत्त्व २६३ भारतीय कलाको इस तरह फिर्को बांटनेके सम्बन्धमें व्युहलरका मत उल्लेखनीय है जो उन्होने मथुरासे प्राप्त पुरातत्त्वसे शिक्षा ग्रहण करके निर्धारित किया था। उनका कहना है - ' मथुरासे प्राप्त खोजोने मुझे यह पाठ पढाया है कि भारतीय कला साम्प्रदायिक नही है । बौद्ध, जैन और ब्राह्मण धर्मोने अपने-अपने समयकी और देशकी ' कलाओं का उपयोग किया है। उन्होंने कलाके क्षेत्रमे प्रतीकों और रूढिगत रीतियों को एक ही स्रोतसे लिया है । चाहे स्तूप हों, या वि वृक्ष या चक्र या और कुछ हो, ये सभी धार्मिक या कलात्मक तत्व रूपमें जैन, बौद्ध और सनातनी हिन्दू सभीके लिए समान सुलभ है ।' उनके इस मतकी पुष्टि विसेण्ट स्मिथने अपनी पुस्तक 'दी जैन स्तूप एण्ड अदर एन्टीक्वीटीस आफ मथुरा मे की है । " 4 + इस तरह प्राचीन मन्दिरों, मूर्तियों, शिलालेखों, गुफाओ और ताम्रपत्रोंक रूपमे आज भी जैन पुरातत्त्व यत्र तत्र पाया जाता है श्री बहुत सा समय के प्रवाहमे नष्ट हो गया तथा नष्ट कर दिया गया मि० फर्ग्युसनका कहना है कि बारह खम्भोंके गुम्बजोंका जैनोमे बहुत चलन रहा है। इस तरहका गुम्बज एक तो भेलसामे निर्मित समान पाया जाता है जो सम्भवत. ४ थी शती का है। दूसरा बाघकी महा. गुफा है जो छठी या सातवी शतीका है । इस तरहके गुम्बज खोज पर और भी मिल सकते थे । किन्तु इन गुम्बजों के पतले और शानदा स्तम्भोंको मुसलमानोने अपने कामका पाया; क्योंकि वे बड़ी सरलता से फिरसे बैठाये जा सकते थे । इसलिए उन्हें बिना नष्ट किये ही........ मानोंने अपने काम में ले लिया । मि० 'फर्ग्युसनका कहना है । अजमेर, देहली, कन्नोज, घार और अहमदाबादकी विशाल मस्जि जनोके मन्दिरोसे ही पुन निर्मित की गयी है । गुजरातके प्रसिद्ध सोमनाथके मन्दिरको कौन नही जानता 1 History of Indian and Eastern Architecture. P. 20 1
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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