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जैन साहित्य
२४५ साहित्य भी अंग्रेजीमे पर्याप्त है। स्व० जे० एल० जैनी और वैरिस्टर चम्पतरायने इस दिशा में उल्लेखनीय सेवा की है।
उपसंहार बहुतसा जैन साहित्य अब प्रकाशमें आ रहा है और नयी शैलीसे उसका सम्पादन भी होने लगा है। प्राचीन जैन साहित्यका तुलनात्मक' तथा ऐतिहासिक विवेचन करनेकी भी परम्परा चल पडी है जिसका श्रेय सर्वश्री नाथूराम प्रेमी, जुगल किशोर,मुख्तार, पं० सुखलाल और मुनि जिनविजय आदि जैन विद्वानोंको है। इस दृष्टिसे प्रेमीजी क! 'जैन साहित्य और इतिहास', मुख्तार सा० की 'पुरातन वाक्य सूची' की प्रस्तावना तथा समन्तभद्र' नामक पुस्तक दृष्टव्य है। षट्खण्डा: गम, कसायपाहुड और न्यायकुमुद चन्दकी हिन्दी प्रस्तावनाएँ मैं तुलनात्मक और ऐतिहासिक दृष्टिकोणसे अध्ययन करनेवालोके लिए बहुत कामकी है। जिज्ञासुओको उनका अध्ययन करना चाहिये। अन्वेषकोंके लिए जैन साहित्यमे प्रचुर सामग्री मौजूद है।
कुछ प्रसिद्ध जैनाचार्य भगवान् महावीरके पश्चात् कितने ही प्रसिद्ध प्रसिद्ध आचा' और ग्रन्थकार हुए है जिन्होने अपने सदाचार और सद्विचारोसे न केवर जैनधर्मको अनुप्राणित किया किन्तु अपनी अमर लेखनीके द्वारा भारती वाडमयको भी समृद्ध बनाया। नीचे कुछ ऐसे प्रसिद्ध आचार्यो और अन्यकारोंका परिचय संक्षेपमे कराया जाता है।
- गौतम गणधर (५५७ ई० पूर्व) यह भगवान महावीरके प्रधान गणधर (गिष्य) थे। मूर नाम इन्द्रभूति था, जातिसे ब्राह्मण थे। वेद वेदाङ्गमें पा थे। जव केवलज्ञान हो जानेपर भी भगवान् महावीरको ५॥ नही खिरी तो इन्द्रको इस वातको चिन्ता हुई । इसका का जानकर वह इन्द्रभूतिके पास गया और युक्तिसे उसे भगवान् महावीर