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जनधर्म कुवलयमाला, हरिभद्रकी समराइचकहा और पादलिप्तको तरंगवतीकहा अति प्रसिद्ध है। कुवलयमाला तो प्राकृत साहित्यका एक अमूल्य रल है । यह प्राकृत भाषाके अभ्यासियोंके लिए बहुत उपयोगी है। इसी तरह आचार्य सिद्धर्षिकी उपमितिभवप्रपञ्चकथा भारतीय साहित्यका प्रथम रूपक ग्रन्थ माना जाता है। - व्याकरणमे आचार्य हेमचन्द्रका 'सिद्ध हेम व्याकरण अतिप्रसिद्ध है। इसीका आठवां अध्याय प्राकृत व्याकरण है, जिससे अच्छा दूसरा प्राकृत व्याकरण आज उपलब्ध नहीं है। कोषोंमे भी हेमचन्द्रका अभिधानचिन्तामणि, अनेकार्थसंग्रह, देशीनाममाला, निघंट शेष, अभिघानराजेन्द्र तथा 'पाइलसहमहण्णव' अपूर्व कोष ग्रन्थ है।
प्रवन्धोंमे चन्द्रप्रभसूरिका प्रभावकचरित, मेस्तुंगका प्रवन्धचिन्तामणि, राजशेखरका प्रवन्धकोश तथा जिनप्रभसूरिका विविधतीर्थकल्प महत्त्वपूर्ण हैं। अन्य भी अनेक विषयोंपर साहित्य पाया जाता है। अपभ्रंश भाषाका साहित्य भी पर्याप्त है, जिसमें धनपालकी 'भविसयत्त कहा' अतिप्रसिद्ध है। स्त्रोत्र साहित्य भी विपुल है। ___ श्वेताम्बर सम्प्रदायका अधिकतर आवास गुजरात प्रान्तमे है । अत. गुजराती भाषामें भी काफी साहित्य मिलता है, जिसका परिचय 'जैन गुर्जर कविनो' नामक ग्रन्थमें विस्तार के साथ दिया है।
विदेशी भाषाओमे भी जैन साहित्य पाया जाने लगा है। जर्मन विद्वान् स्व० हर्मन याकोबीने कई ग्रन्योंका सम्पादन किया था। उनमें उनकी कल्पसूत्रकी प्रस्तावना तथा 'Sacred Books of East नामकी ग्रन्यमालामें प्रकाशित जनसूत्रोंकी प्रस्तावना पढने योग्य है।" जर्मन विद्वान् प्रो० ग्लेजनपका जैनिज्म' भी अच्छा ग्रन्थ है। स्व० वीरचन्द्र राघवचन्द्र गांधीने अमेरिकाके चिकागो नगरमें हुए सर्वधर्म सम्मलनमें जो भाषण जनधर्मके सम्बन्धमें दिये थे, वे 'कर्म फिलोसोफी' के नामसे छप चुके है। न्यायावतार, सम्मतितर्क वगैरह ' का अंग्रेजी अनुवाद भी हो चुका है। और भी अनेक ग्रन्य है। दिगम्बर