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जनवर्म क मुहर्तसे कम रह जाती है तो सव व्यापार वन्द करके ध्यानस्य जाते है। जबतक केवलोके मन, वचन और कायका व्यापार रहना तबतक वे सयोगकेवली कहलाते है।
१४ अयोगकेवली-~-जव केवली ध्यानस्थ होकर मन, वचन और कावका सब व्यापार वन्द कर देते है तव उन्हे अयोग केवली कहते । ये अयोगकेवली वाकी बचे हुए चार अघातिया कर्मोको भी ध्यनजी अग्निके द्वारा भस्म करके समस्त कर्म और शरीरके बन्धनते टकर मोक्ष लाम करते है।
इस तरह संसारके सव जीव अपने अपने आध्यात्मिक विकासके रितम्यके कारण गुणस्थानोमे बंटे हुए है । इनमेसे शुरूके चार गस्यान तो नारकी, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव सभीके होते है। पांचवां णस्थान केवल समझदार पशु पमियों और मनुष्योंके होते हैं । चसे आगेके सब गुणस्थान साधुजनोके ही होते है। उनमें भी सातववारहवें तकके गुणस्थान आत्मध्यानमे लीन साधुके ही होते हैं । और उनमें प्रत्येक गुणस्थानका काल अन्तर्मुहर्त एक मुहुर्तसे कम ता है।
- ९-मोक्ष या सिद्धि मुक्ति या मोश शब्दका अर्थ छुटकारा होता है। अत आत्माके मस्त कर्मवन्धनोसे छूट जानेको मोक्ष कहते हैं। मोक्षका दूसरा म सिद्धि भी है। सिद्धि शब्दका अर्थ 'प्राप्ति होता है। जैसे धातुको लाने तपाने वगैरहसे उसमेंते मल आदि दूर होकर शुद्ध सोना प्राप्त । जाता है वैसे ही आत्माके गुणोको कलुषित करनेवाले दोषोको दूर रके शुद्ध आत्माकी प्राप्तिको सिद्धि या मोक्ष कहते है। कर्ममलसे टकारा पाये बिना मात्मा बुद्ध नहीं होता अत मुक्ति और सिद्धि दोनो एक ही अवस्था के दो नाम है जो दो बातोंको सूचित करते है। क्ति नाम कर्मवन्वनसे छुटकारेको वतलाता है और सिद्धि नाम उस टकारके होनेसे मुद्ध आत्माकी प्राप्तिको वतलाता है। अतः जैनधर्ममें
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गरेके होनेसे शचनले छुटकारका है जो दो बातों मुक्ति और सिद्धि