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चारिन
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उनके शिकारके लिये लपकती रहती है, जो कभी-कभी दूधमे भी जा' पड़ती है। एक बार इसी तरहके दूधको जमा दिया गया। सुबहको जिसने उस दूधके दहीकी लस्सी पी उसीकी हालत खराब हो गई। पीछे दहीके कुंडमे नीचे छिपकली मरी हुई पाइ गई। यदि भोजनमें। जूंखा ली जाये तो जलोदर रोग हो जाता है और मकडी खा ली जाये, तो कुछ हो जाता है। तथा वैद्यकशास्त्रके अनुसार भी भोजन करनेके तीन घटेके पश्चात् जब खाये हुए भोजनका परिपाक होने लगे तवन गय्यापर सोनेका विधान है। जो लोग रात्रिमे भोजन करते है। वे प्राय. भोजन करके पड़ रहते है और विषयभोगमे लग जाते है। इससे स्वास्थ्यकी बडी हानि होती है। अत. नीरोगताकी दृप्टिसे भी.. दिनमे ही भोजन करना हितकर है।
इसी तरह पानी भी हमेशा छानकर ही काममे लाना चाहिये। विना छने पानीमे यदि कीडे हों तो वे पेटमे जाकर अनेक सक्रामक रोग पैदा करते है। जब हैजा वगैरह फैला होता है तब पानीको पकाकर पीनेकी सलाह दी जाती है। वास्तवमें पका हुआ पानी कभी भी विकास नहीं करता। जैन साधु पका पानी ही काममे लाते है। किन्तु जैन गृहस्थोंको पके पानीका तो नियम नहीं कराया जाता, किन्तु छने, पानीका नियम कराया जाता है। अनछने पानीसे छना पानी साफ होता है और छने पानीसे पका पानी शुद्ध होता है। आजकल तो जगह। जगह नल लगे हुए है। किन्तु नलोंका पानी भी छानकर ही काममे. लेना चाहिये, क्योकि नलोंके पानीमे भी जग मिट्टी वगैरह मिली आती है, जो कपड़ेपर जम जाती है। एक बार तो एक साँपका बच्चा, कहीसे नलमे आ गया था। अत. चाहे नलका पानी हो या कुएका हो या नदीका हो, सवको छानकर ही काममे लेना गहिये । इससे हम अनेक रोगों और कष्टोंसे वच जाते है । एक बार समाचारपत्रमे मुरादाबाद जिलेकी एक घटना प्रकाशित हुई थी। एक लड़का रातको खाटके नीचे पानी रखकर सो गया। उसमे विच्छु गिर गया। अचानक