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जैनधर्म
इस ममय व्यवहारसे कर्मचारीगण उसके कामको अपना समझकर दिल गाकर काम करेंगे और उसके हानि-लाभको अपना हानि-लाभ नेगे । इस तरहसे अहिंसामूलक व्यवहार स्वार्थ और परमार्थ दोनो यो दृष्टिसे लाभदायक है । यदि जमीदार और मिलमालिक अपने वाश्रित किसानो और मजदूरों के साथ ऐसा ही प्रेममय व्यवहार करते बनाते तो आज उन दोनो के बीचमे जो खीचातानी चलती रहती है वह निरतना कटुरूप धारण न करती और न जमीदारी और कल कारखानोपर मारकारी नियत्रणकी बात ही पैदा होती । अस्तु ।
न्य
कि
रात्रिभोजन और जलगालन
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त्वर
निस
चिर
उन्न
सा
अहिंसाव्रती श्रावकको रातमे भोजन नही करना चाहिये और नी भी कपड़े से छानकर काममे लेना चाहिये । रातमें भोजन करनेके ष्परिणाम प्राय समाचारपत्रोमे प्रकट होते रहते है | कही चायकी टली में छिपकलीके चुर जानेके कारण चाय पीनेवाले मनुष्योंका मरण नने आता है, कभी किसी दावतमे पकते हुए बरतनमे साँपके घ जानेके कारण मनुष्योंका मरण सुननेमें आता है । प्रतिवर्ष इस रहकी दो चार घटनाएं घटती रहती है, मगर फिर भी मनुष्यों की आँखें ही खुलती । भोजन हमेशा दिनके प्रकाशमें ही देख भालकर करना हिये। रात्रिमे तेजसे तेज प्रकाशका प्रवन्ध होनेपर भी एक तो उतना कष्ट दिखलाई नही देता, जितना दिनमे दिखलाई देता है । दूसरे, के प्रकाशमें जो जीव जन्तु इधर उधर जा छिपते है, रात्रि होते ही सब अपने अपने खाद्यकी खोजमे निकल पड़ते है, कृत्रिम प्रकाश हे रोक नही सकता, वल्कि अधिक तेज प्रकाशसे पतगे वगैरह और - अधिक आते है । खानेवाला भोजन करता जाता है और पतगे टप टप गिरते रहते है। रात्रिको हलवाईकी दूकानपर जाकर । नीचे भट्टीपर दूधकी कडाही चढी होती है और ऊपर बिजलीके स्वपर पतगे मंडराते रहते है और कड़ाहीमे गिर गिरकर पीनेवालोके 'लिये लाईका लच्छा बनानेका काम करते रहते है । पास ही छिपकली
पि
छ
रह
महार