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जनधम उकेको रातमें प्यास लगी और उसने विना देखे ही गिलास उठाकर हसे लगा लिया। विच्छु उसके मुंहमे चला गया और उसके हलकमे चपट कर डक मारने लगा। लडका तिलमिला उठा। बहुत उपचार कया गया मगर विच्छू छुड़ाया न जा सका। आखिर लडकेने तडफ तडफ कर जान दे दी । ऐसी आकस्मिक दुर्घटनाओसे शिक्षा लेना वाहिये और रात्रिभोजन तथा विना छने पानीसे बचना चाहिये । वामिक विषयोमें केवल धर्मकी ही मर्यादा नहीं है, उनमें व्यक्ति और समाजका सामूहिक हित भी छिपा हुआ है।
२. सत्याणुव्रत - जो वस्तु जैसी देखी हो या सुनी हो, उसको वैसा ही न कहना लोकमें असत्य कहलाता है। परन्तु जैनधर्ममे सत्य स्वय कोई स्वतन्त्र नत नहीं है, किन्तु अहिंसावतकी रक्षा करना ही उसका लक्ष्य है। इसलिये जैनधर्ममें जो वचन दूसरोको कष्ट पहुंचानेके उद्देश्यसे बोला हजाता है वह सत्य होनेपर भी असत्य कहलाता है। जैसे, काने पुरुपको चुकाना कहना यद्यपि सत्य है, किन्तु यदि उससे उस मनुप्यके दिलको
चोट पहुंचती है, या यदि उसे चोट पहुंचानेके विचारसे काना कहा - जाता है तो वह असत्यमें ही गिना जायेगा। इसी दृष्टिसे यदि सत्य बोलनेसे किसीके प्राणोपर सकट बन आता हो तो उस अवस्थामे सत्य बोलना भी बुरा कहा जायेगा। किन्तु ऐसे समयमें असत्य वोलकर किसीके प्राणोकी रक्षा करनेसे यदि उसके जुल्म और अत्याचारोसे दूसरोंके प्राणोंपर सकट आनेकी संभावना हो तो उक्त नियममे अपवाद
भी हो सकता है, क्योकि यद्यपि व्यक्तिके जीवनकी रक्षा इष्ट है, । किन्तु व्यक्तिके जुल्म और अत्याचारोको रक्षा किसी भी अवस्थामें इष्ट
नही है। और अत्याचारोंके परिशोधके लिये व्यक्ति या व्यक्तियोंकी
जान ले लेनेकी अपेक्षा उनका सुधार कर देना अति उत्तम है, किन्तु । यदि यह शक्य न हो तो अन्याय और अत्याचारको सहायता देना
तो कभी भी उचित नहीं है। मगर व्यक्ति सुधर सकता है और इसलिये