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चारित्र
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न हवा करता है और न हरी साग सब्जीको या वृक्षोंको काटता है । तथा त्रस जीवोंकी केवल सकल्पी हिंसाका त्याग करता है । इस दीप हिंसाका त्याग कर देनेसे उसके सासारिक जीवनमें कोई कठिनाई ए उपस्थित नही होती, क्योकि सकल्पी हिंसा मनोविनोदकेछ। लिये या दूसरोंको मारकर उसके माँसका भक्षण करनेके लिये की जात ह | खेद है कि मनुष्य 'जिओ और जीने दो' के सिद्धान्तको भुलाकर दिलबहलाव के लिये जंगलमे निर्द्वन्द विचरण करनेवाले पशु पक्षियोका'च शिकार खेलता है और उनके माँससे अपना पेट भरता है। यदि मनुष्य ऐसा करना छोड़ दे तो उससे उसकी जीवनयात्रामे कोई कठिनाई उपस्थित नही होती । मनुष्यके दिलबहलावके साधनोकी कमी नही | है और पेट भरनेके लिये पृथ्वी से अन्न और हरी साग सब्जी उपजाई ज २ सकती है जिससे तरह तरहके स्वादिष्ट भोजन तैयार हो सकते है । है आजके युगमे वैज्ञानिक साधनोसे सब जगह खाद्यान्न उपजाया जा सकता - है और अनावश्यक जानवरोकी पैदायशको भी रोका जा सकता है | ह यदि मनुष्य यह सकल्प करले कि हम अपने लिये किसी जीवकी हत्या न करेगे तो वह दूसरी दिशामे और भी अधिक उन्नति कर सकता है।
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फिर मांसाहार मनुष्यका प्राकृतिक भोजन भी नही है, उसके ' दाँतो और तोकी बनावट इसका साक्षी है । न माँसाहारसे वह बल । और शक्ति ही प्राप्त होती है जो घी, दूध और फलाहारसे प्राप्त होती है । इसके सिवा मांसाहार तामसिक है, उससे मनुष्यकी सात्विक वृत्तियोका घात होता है। इसके विषयमे काफी लिखा जा सकता है किन्तु यहाँ उसके लिये उतना स्थान नही है। इसी तरह शिकार खेलना भी मनुष्यकी नृशसता है । व्याघ्र वगैरह हिंसक पशु भी तभी दूसरे जानवरोंपर आक्रमण करते है जब उन्हे भूख सताती है। किन्तु मनुष्य उनसे भी गया वीता है, जो डरसे भागते हुए पशुओंके पीछे घोडा दौड़ाकर और वाण या वन्दूककी गोली से उनको भूनकर अपना दिल बहलाता है । कुछ लोगों का कहना है कि शिकार खेलनेसे वीरता
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