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जनधर्म योकि वस्तुको सर्वथा नित्य माननेपर विश्वमे जो वैचित्र्य दिखाई ता है वह सभव नही हो सकता । अत परिवर्तनशील ससारकी गोलिक स्थितिमे कोई परिवर्तन न होते हुए विश्वकी व्यवस्था सदा जारी रहती है। . किन्तु कुछ दार्शनिको और जनसाधारणकी भी ऐसी धारणा
कि इस विश्वका कोई एक रचयिता अवश्य होना चाहिये, जिसकी प्राज्ञासे विश्वकी व्यवस्था सदा नियमित रीतिसे जारी रहती है। दृष्टिरचनाके सम्बन्धमे यो तो अनेक मान्यताएं प्रचलित है किन्तु मोटेख्पस उन्हें तीन भागोमे रखा जा सकता है। एक विभागवाले तो यह मानते हैं कि एक परमेश्वर या ब्रह्म ही अनादि अनन्त है। जो एक ब्रह्मको ही अनादि अनन्त मानते है उनका कहना है कि ब्रह्मके सिवाय अन्य कुछ है ही नहीं। यह जो कुछ भी सृष्टि दिखाई दे रही है वह स्वप्नके समान एक प्रकारका भ्रम है। जो परमेश्वरको ही अनादि अनन्त मानते है उनका कहना है कि यह सृष्टि श्रममात्र तो नहीं है। केन्तु इसे परमेश्वरले ही नास्तिसे अस्तिल्प किया है। पहले तो एक परमेश्वरके सिवाय कुछ था ही नही । पीछे उसने किसी समयमें अवस्तुसे ही ये सव वस्तुएं बना दी है। जव वह चाहेगा तब फिर वह इन्हें नास्तिरूप कर देगा और तब सिवाय उस एक परमेश्वरके अन्य कुछ भी न रहेगा। दूसरे विभागवाले कहते है अवस्तुसे कोई वस्तु बन नहीं सकती, वस्तुसे ही वस्तु बना करती है। ससारमे जीव और अजीव दो प्रकारकी वस्तुएं दिखाई देती है, वे किसीके द्वारा बनाई नही गई है। जिस प्रकार परमेश्वर सदासे है उसी प्रकार जीव और अजीवरूप वस्तुएं भी सदासे है, सदा रहेगी। परन्तु इन वस्तुओका अनेक अवस्थाओका बनाना और बिगाडना उस परमेश्वरके ही हाथम है। तीसरे विभागवालोका कहना है कि जीव और अजीव ये दाना ही प्रकारकी वस्तुएँ अनादिसे है और अनन्तकाल तक रहेंगी। इनका अवस्थामोको बदलनेवाला और इस विश्वका नियामक कोई तीसरा