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सिद्धान्त
शेष पाँच द्रव्य भी बहुप्रदेशी है । इसलिये उन्हें अस्तिकाय कहते है किन्तु कालद्रव्य अस्तिकाय नही है, क्योकि उसके कालाणु असत होनेपर भी परस्परमें सदा अवद्ध रहते है, न तो वे आकाशवं प्रदेश की तरह सदासे मिले हुए एक और अखण्ड है और न पुद्गल्ट परमाणुओं की तरह कभी मिलते और कभी बिछुडते ही है । इसलिए वे 'क' ही कहे जाते ।
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प्रदेशके सम्बन्धमे भी कुछ मोटी बाते जान लेनी चाहिये। जितन देशको एक पुद्गल परमाणु रोकता है उतने देशको प्रदेश कहते है लोकाकाशमे यदि क्रमवार एक एक करके परमाणुओको बरावर बरावर सटाकर रखा जाये तो असख्यात परमाणु समा सकते है, अत लोकाकाश और उसमें व्याप्त धर्म और अधर्म द्रव्य असंख्यात प्रदेश' कहे जाते है । इसी तरह शरीरपरिमाण जीवद्रव्य भी यदि शरीरस्त बाहर होकर फैले तो लोकाकाशमे व्याप्त हो सकता है अत. जीवद्रव्यं भी असंख्यातप्रदेशी है । पुद्गलका परमाणु तो एक ही प्रदेशी ह किन्तु उन परमाणुओके समूहसे जो स्कन्ध बन जाते हैं वे सख्यात असंख्यात और अनन्त प्रदेशी होते है । अत. पुद्गल द्रव्य भी बहुप्रदेश है । इस तरह बहुप्रदेशी होनेसे पाँच द्रव्योको पञ्चास्तिकाएं कहते है ।
६. यह विश्व और उसकी व्यवस्था
यह विश्व, जो हमारी आंखोके सामने है और जिसमे हम निवास करते है, इन्ही द्रव्यों बना हुआ है । 'बना हुआ " से मतलब यह नही लेना चाहिये कि किसीने अमुक समयमे इस विश्वकी रचना की है । यह विश्व तो अनादि-अनिधन है, न इसकी आदि ही है और न अन्त ही है, न कभी किसी ने इसे बनाया है और न कभी इसका अन्त ही होता है । अनादिकाल से यह ऐसा ही चला आ रहा है और अनन्तकाल तक ऐसा ही चला जायेगा। रहा परिवर्तन, सो वह तो प्रत्येक वस्तुका स्वभाव है । सर्वथा नित्य तो कोई वस्तु है ही नहीं। हो भी नही सकती.