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संवेग तथा अनुभूतियां
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संवेग एवं अनुभूतियों के विश्लेषण का दार्शनिक महत्त्व इस बात में है कि यह आदमी को सच्चा मानवीय व्यक्ति, जो कि वह मूलतः है, बनने के मार्ग तथा उपाय सुनाता है । मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के उद्देश्य के बारे में हम यह कह सकते हैं कि, यह मानव व्यक्तित्व के संपूर्ण समाकलन की नैसर्गिक आवश्यकता का पोषण करता है । आदमी को कैसा होना चाहिए, इस बात की बजाय वह कैसा है, इसी के आधार पर दार्शनिकों ने मानव मन की विविध अवस्थाओं, विशेषतः उनके एकांगी विकास से जनित खतरों के बारे में विचार किया है। इसीके आधार पर हम समझ सकते हैं कि भारतीय दार्शनिकों ने मन के नियंत्रण पर बार-बार इतना जोर क्यों दिया है । व्यक्तित्व को पूर्णता तक पहुंचाने के लिए भारतीय चिन्तन परम्परा में जो पुरातन उपाय बताया गया है वह यह है कि, यदि आदमी जीवन की चरम सीमा (जिसके बारे में आस्तिक तथा नास्तिक दार्शनिकों के अपने-अपने मत हैं) पर पहुंचना चाहता है, तो उसे, अपने भीतर' देखना चाहिए और अपनी आत्मा से सम्बन्धित सभी अशुद्धियों को दूर करना चाहिए।
चंकि जैन दार्शनिकों के अनुसार जीवन का उद्देश्य चेतना की पूर्वकालिक सुद्धता को पुनः प्राप्त करना है, इसलिए हम देखते हैं कि वे जीव को अजीब से मुक्त कराने की आवश्यकता पर बल देते हैं। क्योंकि जीव तथा अजीव का सम्पर्क कर्म के अणुओं के कारण होता है, इसलिए चेतना को इसकी तन्द्रा से मुक्त करके शुद्ध करने का अंतिम उपाय यही है कि कर्म का आगमन रोक दिया जाय। ___ संवेगों तथा अनुभूतियों के जैन सिद्धान्त के दर्शन हमें उनकी जीव की वस्तुनिष्ठ व्याख्या में होते हैं। यद्यपि अनुभवातीत दृष्टि से जीव शुद्ध चेतना के अलावा और कुछ नहीं है, प्रायोगिक दृष्टि से देखने पर पता चलता है कि अविद्या के प्रभाव के कारण यह कवायों यानी विकृतियों से घिरा रहता है। चूंकि जीव तथा अविधा दोनों ही अनादि हैं, अतः यह बताना भासान नहीं है कि जीव अविद्या के संपर्क में कब आया। वस्तुतः उनका सम्पर्क भी बनादि है। योग यानी 1. उमेश मिश्र, पूर्ण, ए. 262