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________________ भनुमान "क्योंकि वहां धुआँ है" (हेतु) ही अनुमिति के लिए पर्याप्त हैं। पांच अवयवों वाले न्याय में से शेष तीन अवयव "जहां धुआं होता है, वहां आग होती है, जैसे, रसोईघर में" (दृष्टांत) "पहाड़ी पर वैसा ही धुआं है" (उपनय) "इसलिए वहां पहाड़ी पर आग है" (निगमन) जो उपपत्ति के लिए आवश्यक नहीं समझे जाते । अतः अब यह स्पष्ट है कि "शानी पुरुष के लिए पर्याप्त" शब्द (ऊपर उद्धत श्लोक में) कितने महत्व के हैं, क्योंकि उनसे जाहिर हो जाता है कि जैन परम्परा में भी न्याय के पांच या दस अवयवों का उल्लेख क्यों है । जैसा कि जैन परम्परा में कहा गया है : विकल्प रूप से न्याय के पांच अथवा दस अवयव हैं । हम दोनों को न्याय्य मानकर स्वीकार करते हैं।" प्रमाण-मीमांसा में न्याय के पांच अवयवों की परिभाषाएं दी गयी हैं : "प्रतिज्ञा साध्य-निर्देश का कथन है।'' "साध्य की उपस्थिति को जाहिर करनेवाले लिंग का कथन हेतु है ।"10 "उदाहरण दृष्टांत का कथन है।" "उपनय में व्याप्ति को प्रतिज्ञा (मिन) के साथ जोड़ा जाता है।" "निगमन में लिंगी का अस्तित्व स्थापित किया जाता है।" इस संदर्भ में यह बताना जरूरी है कि, यहां दूसरा अवयव महत्त्व का है, क्योंकि इसमें निगमन का संकेत होता है । दृष्टांत अथवा उदाहरण भी दो प्रकार के होते हैं : साधर्म्य दृष्टांत और वैषH दृष्टांत, जैसा कि इन कथनों से जाहिर है : "जहां धुआं है, वहां आग है" और "जहां आग नहीं है, वहां धुआं नहीं जैन तर्कशास्त्र में पांच अवयव तथा दस अवयव वाले न्याय को स्वीकार किया गया है, क्योंकि उन सामान्य व्यक्तियों के लिए उनकी उपयोगिता है जो न्यायशास्त्र के पंडित नहीं होते। ये उन संदेहों का निवारण करने के लिए उपयोगी हैं जो कि न्याय को सुननेवाले के मन में उठ सकते हैं । 8. 'दशकालिक-नियुक्ति', 50 9. "प्रमाण-मीमांसा,' II. 1.11 10. वही, II. 112 11. वही, II. 1.13 12. 'प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार', III.49-50 13. वही, III 51-52
SR No.010094
Book TitleJain Darshan ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorS Gopalan, Gunakar Mule
PublisherWaili Eastern Ltd Delhi
Publication Year
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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