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जैन दर्शन
अनुमान को नियत न्याय माना गया है, यह इस परिभाषा से स्पष्ट है : "अनुमान लिंग द्वारा निर्धारित साध्य का (साध्य-निश्चयक) ज्ञान है, और यह लिंग साध्य से दृढ़ता से सम्बन्धित रहता है। एक सरल परिभाषा भी है : "साधन द्वारा प्राप्त साध्य का ज्ञान अनुमान है।" ___ अनुमान को कल्पित न्याय माना गया है, यह इस परिभाषा से स्पष्ट है : "अनुमान (एक वस्तु की दूसरी के सापेक्ष) उपस्थिति या अनुपस्थिति पर आधारित व्यान्तिज्ञान है, और इसका स्वरूप है : यदि यह है, तो वह है; यदि वह नहीं है, तो यह नहीं है । उदाहरणार्थ, जहां धुआं है, वहां अग्नि है : यदि अग्नि नहीं है, तो धुआ भी नही है।"
विषयगत अनुमान में स्वयं निर्धारित प्रमाण से प्रमेय का ज्ञान होता है, और इसकी एकमात्र विशेषता यह है कि प्रमेय के साथ इसका अनिवार्य संयोग होता है । 'अनिवार्य मंयोग' का अर्थ यह है कि एक की अनुपस्थिति में दूसरा भी अनुपस्थित रहता है। व्यक्ति द्वारा प्रमाण का निश्चित बोध और प्रमाण तथा प्रमेय के स्थिर संयोग के पूर्वज्ञान से उसे नया ज्ञान होता है और यह विषयगत अनुमान है।
न्याय्य अनुमान का समावेश परार्थानुमान के अन्तर्गत होता है "न्याय्य अनुमान निर्णीत ज्ञान है और यह ऐसे प्रमाण के कथन से प्राप्त होता है जिसका प्रमेय के साथ अनिवार्य मंयोग होता है। न्याय के अवयवों के बारे में जैन दृष्टिकोण का सार इन शब्दो मे है : 'ज्ञानी पुरुष के लिए न्याय के प्रतिज्ञा तथा हेतु अवयव ही पर्याप्त हैं ।'' जैन दृष्टि यह जान पड़ती है कि, अनुमिति के बारे में विशेष बात यह है कि प्रतिज्ञा प्रमेय के साथ अनिवार्य रूप से सम्बन्धित होने से प्रतिज्ञा की जानकारी से प्रमेय का अनुमान लगाया जा सकता है । प्रसिद्ध उदाहरण है : हमारे दैनन्दिन अनुभव से, धुओं अग्नि के साथ अनिवार्य रूप से सम्बन्धित होने से, धुआं देखने पर अग्नि की उपस्थिति का अनुमान लगाया जाता है । जब हम प्रतिज्ञा को सुनते हैं, जब पहाड़ी पर धुआँ होने की प्रतिज्ञा प्रस्तुत की जाती है, तो सुननेवाला फौरन इस नतीजे (अनुमान) पर पहुंचता है कि पहाड़ी पर आग है । अतः, वस्तुतः, केवल दो अवयवः
"पहाड़ी पर आग है" (प्रतिज्ञा), और 2. वही,5 3. 'परीक्षामुखसूत्र', III.9 4. वही, 7.8 5. देखिये, एम० एल० मेहता, 'आउटलाइन्स बॉफ जैन फिलॉसफी', पृष्ठ 108-109 6. 'प्रमाण-मीमांसा', 11.1.1 7: बही, II. 1.1