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केवलज्ञान
इसका उपयोग होता है । सर्वश सत्ता अनुमेय है, और इसलिए उसे अर्थापत्ति की सहायता की आवश्यकता नहीं है ।
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ariant का कहना है कि अनुपलब्धि के प्रमाण से भी सर्वज्ञत्व सिद्ध नहीं होता । तर्क यह पेश किया जाता है कि अभाव का अनुभव हमें तभी होता है जब कि किसी सत्ता की अनुपस्थिति होती है । परन्तु सर्वज्ञ सत्ता का हम अनुभव नहीं कर सकते। हम केवल असर्वज्ञ सत्ताओं को ही सर्वत्र देखते हैं; इसलिए किसी सर्वज्ञ सत्ता की प्राप्ति असंभव है ।
जैनों का उत्तर है : चूंकि अनुमान से सर्वज्ञ का अस्तित्व स्पष्टतः सिद्ध होता है, अतः सर्वज्ञ सत्ता का अस्तित्व अभाव जैसे प्रमाण द्वारा नकारा जाना असंभव है ।
atrine निर्ममता से विभिन्न विकल्पों को प्रस्तुत करते हैं, और बताते हैं कि इनमें से कोई भी विकल्प साध्य नही है । उनके मतानुसार, केवलज्ञान शब्द.
अर्थ सभी वस्तुओं के बारे में ज्ञान हो सकता है या प्रमुख वस्तुओं से सम्बन्धित ज्ञान हो सकता है । यदि प्रथम विकल्प को स्वीकार किया जाता है तो आगे सवाल उठता है कि वस्तुबोध क्रमिक हैं या एककालिक । यदि बोध क्रमिक है तो यह सत्य नहीं है, क्योंकि वस्तुओं के क्रमिक बोध का अर्थ होता है अतीत, वर्तमान तथा अनागत की सभी वस्तुओं का बोध । परन्तु हमारा सामान्य अनुभव है कि वर्तमान की सभी वस्तुओं का बोध भी अत्यन्त दुष्कर हैं, तो फिर यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि वर्तमान की सभी वस्तुओं के अतिरिक्त अतीत तथा अनागत की सभी वस्तुओं का भी बोध हो सकता है ? जैनों का उत्तर यह है कि, केवलज्ञान में सभी वस्तुओं का बोध क्रमिक नहीं बल्कि एक साथ ही होता है। का कहना है कि विभिन्न पदार्थों का एककालिक बोध नितान्त असंभव है । उनका प्रश्न है : उदाहरणार्थ, "ताप तथा शीत को एक साथ कैसे अनुभव किया जा सकता है ?" अपनी इस महत्त्वपूर्ण मान्यता के समर्थन में जैन उत्तर देते हैं : जब आकाश में बिजली चमकती हैं तो हम एक साथ प्रकाश तथा अंधेरा देखते हैं ।
Aries का एक और दृष्टिकोण यह है कि यदि मान भी लिया जाय कि 'समस्त का बोध' संभव है, तो भी पूर्ण बोध के तुरंत बाद व्यक्ति मूर्च्छित हो जायगा और फिर उसे किसी अन्य बात का बोध नहीं होगा। जैनों का उत्तर है : सर्वज्ञत्व के बारे में विशेष बात यह है कि ऐसा कोई क्षणांश नहीं है जब कि बोध न होता हो, ज्ञान का विनाश नहीं होता, न ही संसार का होता है । अतः यह आपत्ति कि सिद्ध पुरुष मूर्च्छित हो जायगा, व्यर्थ है ।
मीमांसक यह भी कहते हैं कि 'संपूर्ण ज्ञान' में सभी तृष्णाओं के ज्ञान का भी समावेश होता है, और इसलिए उस सिद्ध पुरुष पर तृष्णाओं का असर हो