________________
जैन दर्शन
अन्य जैन दार्शनिक जिनभद्र का भी यही मत है। वह धारणा का तीन रूपों में विश्लेषण करते हैं-अविच्युति, वासन और अनुस्मरण | 20
58
कुछ जैन दार्शनिकों की परिभाषा के अनुसार, धारणा स्मृति की अवस्था है । परन्तु इस परिभाषा की यह कहकर आलोचना की गयी है कि यह मानव मनोविज्ञान की दृष्टि से असत्य है । क्योंकि इसमें ऐसी स्थिति पैदा होती है जिसमें याद किये जाने के समय तक गोचर निर्णय को धारण करके रखना पड़ता है । इस आलोचना में यह भी बताया गया है कि, नये सिद्धान्त के अनुसार गोचर निर्धारणा की स्थापना तथा इसको स्मरण करने के काल के बीच में अन्य किसी प्रकार का बोध संभव न होगा। यह आलोचना उचित है, क्योंकि दोनों ही मतों के अनुसार दो बांध एक साथ नहीं हो सकते ।
i
जैन दार्शनिकों ने इन्द्रियगोचर शान के चार स्तरों का जैसा विश्लेषण किया है, उसकी तुलना आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के विश्लेषण से की जा सकती है। जैन दार्शनिकों ने मानव मस्तिष्क से सम्बन्धित धारणाओं का बड़ी सूक्ष्मता से गहन अध्ययन किया है और उनका मनोवैज्ञानिक अन्तदर्शन बड़े महत्व का है।
10. 'विशेषावश्यक भाष्य', 291