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जैन दर्शन
नहीं है कि जैन धर्मग्रन्थों में प्रमाणों तथा प्रमेयों में स्पष्ट भेद किया गया है । अनेक जैन ग्रन्थों में हम देखते हैं कि इन्हें सम्बन्धित एवं संश्लेषित किया गया है। उदाहरण के लिए, तस्वार्थसूत्र में हम देखते हैं कि इन दोनों-ज्ञान तथा प्रमाण --- की पूर्णतः एक बना दिया गया है। इस सूत्र का रचयिता कहता है : "ज्ञान पांच प्रकार का है-मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय और केवल । यह सभी प्रकार प्रमाण है ।" यहां लेखक ने सम्यक् ज्ञान को प्रमाण के अर्थ में लिया है।
इन पांच प्रकार के ज्ञान में से मति तथा श्रुत को परोक्ष ज्ञान कहते हैं और अवधि, मनः पर्याय तथा केवल को प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं ।"
मति ज्ञान वह है जो इन्द्रियमनोजन्य है कौर श्रत ज्ञान वह है जो शब्दों से प्राप्त किया जाता है, यानी ऐसे शब्दों से जो विचार, हावभाव आदि के द्योतक होते हैं। विशेष बात यह है कि जैन परम्परा में मति तथा श्रुत के अन्तर्गत मीमांसा के सभी छह ज्ञान के अनुभवों-अनुमान, उपमान, आगम, अर्थापत्ति, संभव तथा अभाव का समावेश हो जाता है ।" आगम की परिभाषा दी गयी है : "ऐसे शब्दों से प्राप्त ज्ञान जिन्हें सही अर्थों में ग्रहण करने पर उनसे ऐसी
ता का बोध होता है जो प्रत्यक्ष ज्ञान से प्राप्त यथार्थता से भिन्न नहीं होती ।"" इस परिभाषा से हमें श्रुत के महत्व के बारे में अधिक गहन बातों की जानकारी मिलती है । अवधि-ज्ञान भौतिक वस्तुओं के बारे में वह निर्णायक ज्ञान है जो ज्ञाता द्वारा इन्द्रियों अथवा मन की सहायता के बिना सीधे प्राप्त किया जाता है । मनःपर्याय ज्ञान द्वारा दूसरों के मन में चिन्तित पदार्थों का बोध होता है । केवल ज्ञान संपूर्ण यथार्थता का वह सिद्ध एवं असीम ज्ञान है जिसे ज्ञाता सीधे प्राप्त करता है।
बाद के कुछ जैन दार्शनिकों ने इस बात पर विशेष विचार किया है कि ज्ञान की सिद्धि (जिसे कभी-कभी सम्यक् ज्ञान भी कहा जाता है) को किस प्रकार निर्धारित किया जाय । प्रामाणिक ज्ञान उसे कहा गया है जो स्वयं को प्रकाशित करता है और दूसरों को भी प्रकाशित करता है। ऐसे ज्ञान की तुलना दीये के साथ की गयी है; जलता हुआ दीया न केवल दूसरी वस्तुओं को प्रकाशित करता है, अपितु स्वयं को भी प्रकाशित करता है। एक जैन दार्शनिक सिद्धसेन के मतानुसार, प्रमाण ऐसा ज्ञान है जो भावविवजित होता है और स्वपराभासि 3. तुलना कीजिये, 'भगवती सूत्र, 88.2.317, जिसमें ज्ञान के पांच प्रकार बताये है : afertainधक, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय और केवल ।
4. 'तपासू', I. 11
5. वही, I. 12
6. देखिये, 'तत्त्वार्थ सूत-भाष्य, ' 1. 12
7. 'ब्याबाबतार', 5