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जैन धर्म नास्तिक है ?
कहां किया ? एक निराकार निद्रव्य ईश्वर द्रव्यमय विश्व का निर्माण कैसे कर सकता ? यदि द्रव्य का पहले से अस्तित्व रहा है, तो फिर विश्व को अनादि मानने में क्या हर्ज है ? यदि सृष्टिनिर्माता का निर्माण किसी ने नहीं किया है, तो फिर विश्व का स्वतः अस्तिस्व मानने में क्या हर्ज है?" आगे वह कहते हैं : "क्या ईश्वर स्वत: पूर्ण है? यदि है, तो उसे इस विश्व का निर्माण करने की कोई आवश्यकता नहीं थी । यदि नहीं है, तो एक साधारण कुम्भकार की तरह वह इस कार्य के लिए अयोग्य होगा, क्योंकि स्वीकृत परिकल्पना के अनुसार एक परिपूर्ण सत्ता ही इस कार्य को कर सकती है...
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जैन दार्शनिक ठीक ही पूछते हैं: "यदि हर वस्तु का कोई निर्माता है, तो उस निर्माता का भी कोई निर्माता होना चाहिए, इत्यादि। इस दुश्चक्र से बचने के लिए हमें एक अनिर्मित, स्वतः सिद्ध कारण, ईश्वर की कल्पना करनी पड़ती है । किन्तु यदि यह माना जा सकता है कि एक सत्ता स्वतःपूर्ण है, तो फिर यह क्यों नहीं माना जा सकता कि सभी सत्ताएं भी इसी प्रकार अनिर्मित गौर अनन्तकालिक हैं ?" अतः "इस विश्व का कोई आदि कारण मानने की आवश्यकता नहीं है । "" सर्वपल्लि राधाकृष्णन् ने जैन मत के बारे में लिखा है : " जैन मत है कि इस विश्व की सभी चैतसिक तथा भौतिक वस्तुओं का अस्तित्व अनन्त काल से है और किसी बाह्य शक्ति के प्रभाव के बिना प्राकृतिक शक्तियों से ही ये अनन्त चक्रों में चली आ रही हैं। विश्व की विविधता इन पांच प्रतिबंधों के मेल-जोल के कारण है-काल, स्वभाव, नियति, कर्म और उद्यम । "9
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इस विश्व का न निर्माण हुआ है, न अन्त होने वाला है - जैनों की इस धारणा से उनका ईश्वर सम्बन्धी दृष्टिकोण प्रतिबद्ध है । क्योंकि, नाम, रूप और अनुभूतियों वाले इस जगत के लिए आस्तिक मतावलम्बी विचारक ईश्वर के अस्तित्व की कल्पना करते हैं, इसलिए इनके द्वारा प्रस्तुत हर तर्क का जैन विचारक खण्डन करते हैं। चूंकि जैन दार्शनिकों ने नैयायिकों के तक का सबसे जबरदस्त खण्डन किया है, इसलिए यहां हम केवल उन्हीं की चर्चा करेंगे ।
नैयायिकों का एक तर्क यह है कि इस जगत कार्य का कोई कारण होना चाहिए, एक बुद्धिमान कारण, और यही ईश्वर है। जैन दार्शनिक कहता है : इस सादृश्य के आधार पर कि सामान्य कार्यों के लिए बुद्धिमान मानव कारण होते हैं
7. 'विराम', प्रकरण तीन (सी० के० शाह द्वारा 35
8. हेमचन्द्र, 'स्वाद्वादवरी लोक 6
9. 'इ'डियन फिलॉसफी', पृ० 330
10. देखिये, 'स्वादगंबरी' और 'पवनयमुपव