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मान धर्म नास्तिक है! पिक एवं वदानिक पात होगी, क्योंकि जैन धर्म में केवल ईयर को भलीकार किया गया है, ईश्वरत्वको नहीं। .. . रिचार्डमा सामान्य और पार्शनिक मनीश्वरवाद में स्पष्ट बसर करते है। उनका कहना है कि सामान्य अनीश्वरवाद वैदिक काल में भी देखने को मिलता है ।"ऋग्वेद के कई सूक्तों में प्रमुख वैदिक देवता इनके अस्तित्व को अस्वीकार किया गया है। उन दिनों में भी ऐसे कई लोग जो इन्द्र के होने में यकीन नहीं करते थे। यहां हमें पहली बार उस सामान्य बनीश्वरवाद के दर्शन होते हैं जो दार्शनिक चिन्तन पर आधारित नहीं था और उस वस्तु के होने में पकीन नहीं करता था जिसे वह देख न सके। ऐसा ही अनीश्वरवाद कालान्तर में लोकायत मत अथवा कोरा भौतिकवाद कहलाया। यह अनीश्वरवाद उस अनीश्वरवाद से भिन्न था जिसका जन्म गहन दार्शनिक चिन्तन में हुआ था। ऐसे अनीश्वरवाद को हम दार्शनिक अनीश्वरवाद कहेंगे।"
सही दृष्टि से देखा जाय तो जैन अनीश्वरवाद वस्तुतः दार्शनिक अनीश्वरबाद है, क्योंकि उसमें सृष्टिकर्ता ईश्वर की सत्ता का गहन विश्लेषण किया गया है और उन दार्शनिकों के तकों का व्यवस्थित रूप से खण्डन किया गया है जिन्होंने ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने के प्रयत्न किये । जैन धर्म में ईश्वर शब्द का प्रयोग जीव के उच्च स्तरीय अस्तित्व के अर्थ में किया गया है। मान्यता यह है कि ईश्वरीय अस्तित्व मानवीय अस्तित्व से थोड़ा ही ऊंचा है, क्योंकि यह भी जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त नहीं है। सर्वार्षसिद्धि नामक सर्वोच्च स्वर्ग में सर्वाधिक अस्तित्व का काल ३२ और ३३ सागरोपमों के बीच का है। ईश्वरीय जीवों ने अपने जिन अच्छे कर्मों से सामान्य मानवों से अधिक ऊंचा स्तर प्राप्त किया था, उनके समाप्त होते ही उन्हें पृथ्वी पर लौट आना पड़ता है। परन्तु यदि इस काल में वे अतिरिक्त ज्ञान का संग्रह करते हैं, तो उन्हें जन्मके इस कष्टमय चक्र से मुक्ति मिल सकती है।
जैन मतानुसार मुक्त आत्माएं विश्व के सर्वोच्च स्थान पर पहुंच जाती हैं। ये परिपूर्ण आत्माएं होती हैं, इसलिए इनका पतन नहीं होता। ये सर्वदा के लिए वहीं ऊपर रहती हैं । ये संसार से मलम हुई आत्माएं होती हैं, इसलिए इस जगत पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता । और इसीलिए सर्वशक्तिमान जगतकर्ता के कार्य-कलापों से उनका कोई सरोकार नहीं होता। अन्य जो जीव इसी संसार में रहते हैं उन्हें सर्वकालिक नहीं कहा जा सकता। इसी दृष्टि से
1. IV.24. 10:x,119 2. II. 12.5; VIII. 100.3 , 3. 'इन्साइक्लोपिडिया बॉफ रिलिजन एक एपिक्स',
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