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जैन साहित्य
v छेद-सूत्र
ये छह हैं। इसमें जैन भिक्ष तथा भिक्ष ुणियों के आचरण का तथा नियम मंग किये जाने पर समुचित प्रायश्वित्तों का विधान है। इस दृष्टि से इन ग्रन्थों की तुलना बौद्धों के विनय पिटक से की जा सकती है। छेद-सूत्र ये हैं निशीच, महानिशीथ, व्यवहार, आचारदशा, बृहत्कल्प और पंचकल्प |
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VI मूल-सूत्र :
जैसा कि नाम से जाहिर है, इनमें 'मूलभूत' सिद्धान्तों का विवेचन है। स्वयं भगवान महावीर के वचनों का इनमें संकलन हुआ है। अतः ये सूत्र विशेष महत्त्व के हैं। इनकी संख्या चार है :
उत्तराध्ययन सूत्र : इसके विषय सूत्रकृतांग से मिलते हैं। इसमें यदा-कदा विरोधी मतों के भी उल्लेख मिलते हैं ।
आवश्यक सूत्र : इसमें जैन मुनियों तथा गृहस्थों के लिए आवश्यक रूप से करणीय छह नित्यक्रियाओं का विवेचन है ।
शकालिक : इसमें मुनि-आचार का निरूपण किया गया है। fifty for : यह पहले के सूत्र का परिशिष्ट है ।
VII चूलिका - सूत्र : नन्वीसूत्र और अनुयोगद्वार - सूत्र :
इनमें सम्पूर्ण धर्म साहित्य के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी है और समझाया गया है कि इनका अध्ययन किस प्रकार करना चाहिए ।