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श्वेताम्बर और दिगम्बर
दोनों सम्प्रदायों के धर्मशास्त्र तर ग्रन्थों की सूचियों में भी काफी अन्तर है। श्वेताम्बर गृहस्थों को धर्मग्रन्थ पढ़ने की अनुमति नहीं देते थे, किन्तु दिगम्बरों ने सभी को धर्मग्रन्थ पढ़ने की अनुमति दे दी थी ।
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स्त्रियों के बारे में
श्वेताम्बरों का मत था कि एक स्त्री भी तीर्थंकर बन सकती है, इसलिए उन्होंने स्त्रियों को प्रव्रजित होने की अनुमति दे दी । परन्तु दिगम्बरों ने स्त्रियों को संघ में शामिल होने की अनुमति नहीं दी। उनका मत था कि स्त्री के पुरुष जन्म लेने पर ही उसे तीर्थंकर-पद की प्राप्ति हो सकती है ।
उपवर्गों के बारे में
श्वेताम्बरों के दो वर्ग हो गये स्थानकवासी तथा देवासी । दिगम्बरों के चार प्रमुख वर्ग हुए - काष्ठासंघ, मूलसंघ, मथुरासंघ और गौप्यसंघ । इनमें बहुत ही थोड़ा अन्तर है। चौथे वर्ग की कई बातें श्वेताम्बरों से मिलती है ।
मुनियों के बारे में
श्वेताम्बर मुनि कटिवस्त्र, उत्तरीय आदि चौदह वस्तुएं अपने पास रख सकता है । उसे भ्रमण करते रहने की अनुमति थी । अतः यह आश्चर्य की बात नहीं है कि गृहस्थ लोग मुनियों से कुछ परेशान भी थे । दिगम्बर साधु अपने पास केवल दो वस्तुएं रख सकता है - मोरपंख और मार्जनी । और उसे अरण्य में ही रहना होता था ।
प्राचार्यों की जीवनियों के बारे में
श्वेताम्बर चरित्र शब्द का प्रयोग करते हैं और दिगम्बर पुराण शब्द का ।