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जैन दर्शन
श्वेताम्बरों ने लिखा है कि महावीर का विवाह आरंभिक युवावस्था में ही हो गया था। और तीस साल की आयु में तपस्वी बनने के समय तक उन्होंने एक गृहस्थ का जीवन बिताया है। यह बात श्वेताम्बरों के इस मत के अनुरूप है कि महावीर बचपन से ही वैराग्य वृत्ति के थे और सांसारिक जीवन का त्याग करना चाहते थे । इससे उनके माता- शिता बड़े चिंतित थे, इसलिए उन्होंने जल्दी ही महावीर का विवाह कर दिया और उनके लिए सांसारिक सुख की वस्तुएं उपलब्ध करा दीं। बताया जाता है कि महावीर का विवाह राजकुमारी यशोदा से हुआ था ।
दिगम्बर मत है कि महावीर का विवाह नहीं हुआ था। इसके लिए वे पउमचरिय तथा आवश्यक नियुक्ति के पद्यों का हवाला देते हैं। इन ग्रन्थों में fafभन्न तीर्थंकरों की जीवन-गाथाएं हैं। इनमें १२, १६वें २२वें २३वें तथा २४ तीर्थंकर महावीर) और शेष सभी तीर्थंकरों के बीच स्पष्ट अन्तर दरशाया गया है । इन ग्रन्थों के अनुसार, उपर्युक्त पांच तीर्थंकरों ने कुमार अवस्था में ही संसार त्याग कर दिया था, जब कि अन्य तीर्थंकरों ने अपने-अपने राज्य भोगने के बाद संसार त्याग किया। संस्कृत में इस कुमार शब्द के दो अर्थ हैं--- राजकुमार और अविवाहित । इन ग्रन्थों में जिस संदर्भ में कुमार शब्द का उल्लेख आया है, उससे स्पष्ट होता है कि यह महावीर के अविवाहित होने का द्योतक नहीं है । ! इस बात की काफी संभावना है कि महावीर अपनी इच्छा के विरुद्ध विवाह के लिए सहमत हुए हों, परन्तु यह लगभग निश्चित है कि उनका विवाह हुआ था ।
श्वेताम्बरों का मत है कि महावीर की प्रव्रजित होने की बड़ी इच्छा थी, किन्तु उन्होंने मां को वचन दिया था कि माता-पिता के जीवित रहते वे संन्यासी नहीं बनेंगे। माता के आग्रह करने पर ही उन्होंने यह वचन दिया था। मातापिता की मृत्यु के बाद भी बड़े भाई से अनुमति लेकर ही महावीर प्रव्रजित हुए थे । श्वेताम्बरों के मतानुसार, महावीर ने यह सब इसलिए किया कि प्रव्रजित होने के पहले वे किसी को दुःख नहीं देना चाहते थे। दिगम्बरों का मत है कि महावीर ने अपने माता-पिता के जीवन काल में और उनकी इच्छा के विरुद्ध ही गृहत्याग किया।
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धर्म ग्रन्थों के बारे में
श्वेताम्बरों का मत है कि चौदह पूर्व लुप्त हो गये हैं, परन्तु प्रथम ग्यारह अंग उपलब्ध हैं। दिगम्बरों का मत है कि पूर्व तथा अंग दोनों ही लुप्त हो गये हैं। वे आचार्य स्थूलभद्र के नेतृत्व में आयोजित प्रथम संघ-सम्मेलन की कार्यवाही को स्वीकार नही करने, इसलिए पुनः संकलित बंग साहित्य भी उन्हें मान्य नहीं है।