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श्वेताम्बर और दिगम्बर
कथा में, विशेषत: इस प्रसंग में कि शिवभूति ने अपनी बहन का मिक्ष भी बनना स्वीकार नहीं किया, कुछ सार प्रतीत होता है।
अब नीचे हम इन दो सम्प्रदायों के कुछ मतान्तरों का उल्लेख करेंगे :
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तीर्थंकरों के सम्बन्ध में :
दोनों सम्प्रदायों की मूर्तियों के लाक्षणिक स्वरूपों में भिन्नता है । श्वेताम्बर परंपरा की मूर्तियां कटिवस्त्र धारण किए, रत्नाभूषणों से सुशोभित तथा संगमर्मर में बिठायी कांच की आंखों से मुक्त रहती हैं।
दिगम्बर परंपरा की मूर्तियां नग्न होती हैं और आंखें नीचे की ओर झुकी रहती हैं ।
महावीर के सम्बन्ध में :
श्वेताम्बरों का मत है कि महावीर की माता भवियाणी विशला है, परन्तु गर्म रहा था ब्राह्मणी देवानन्दा को । कहा जाता है कि गर्भ धारण के आठवें दिन इन्द्र देवता ने गर्म स्थानान्तरित किया। इस कथा का उल्लेख कम-से-कम तीन जैन ग्रन्थों में है - आचारांग, कल्पसूत्र तथा भगवती सूत्र । इस बात की काफी संभावना है कि कल्पसूत्र के लेखक ने ब्राह्मणों को नीची निगाह से देखने की अपने समय की भावना के वशीभूत होकर यह कथा गढ़ी हो और बाद में आचारांग में भी इसे स्थान मिल गया हो। इस कथा के बारे में याकोबी का मत है कि सिद्धार्थ ( महावीर के पिता) की दो पत्नियां थीं---ब्राह्मणी देवानन्दा और क्षत्रियाणी विशला । और बालक को जीवन-यापन की विशेष सुविधाएं मिलें, इसलिए उसे क्षत्रियाणी का पुत्र मान लिया गया। परन्तु जब हम देखते हैं कि उस जमाने मे अन्तर्जातीय विवाह को पसंद नहीं किया जाता था, तो याकोबी के मत को स्वीकार करने में कठिनाई होती है। संभव है कि देवानन्दा वास्तविक मां नहीं, बल्कि घाय मां थीं । आचारांग से जानकारी मिलती है कि बालक महावीर की देखभाल के लिए पांच परिचारिकाएं थीं और इनमें से एक धाय मां थी । दिगम्बर इस पूरी कथा को असंगत एवं अविश्वसनीय मानते हैं ।
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श्वेताम्बरों द्वारा लिखी गई महावीर की जीवनियों में दिखाया गया है कि कि वे बचपन से ही दार्शनिक वृत्ति के थे। सांसारिक जीवन को त्यागना चाहते थे, किन्तु माता-पिता की अनुमति नहीं थी इसलिए उन्होंने ऐसा नहीं किया । दिगम्बर मत यह है कि सांसारिक वस्तुओं की क्षणभंगुरता से व्यथित होकर तीस साल की आयु में उन्होंने एकाएक गृहत्याग किया, और उस समय तक अन्य राजकुमारों की तरह वे भी राजमहल के जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को भोगते रहे ।