SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन दर्शन भारत में संघ प्रमुख बने, तो उन्होंने इस नियम में ढील दी और दोनों सम्प्रदायों के भिक्ष ुओं को वस्त्र धारण करने की अनुमति दे दी। जब भद्रबाहु लौट आए और पुन: संघ प्रमुख बने, तो कुछ भिक्षुओं को भी 'दिगम्बर' बनाने में उन्हें सफलता नहीं मिली। इससे भद्रबाहु चितित थे। दूसरी बात यह है कि भद्रबाहु जब मगध से अनुपस्थित थे, तो धर्म ग्रन्थों का संकलन एवं संपादन करने के लिए स्थूलभद्र ने पाटलिपुत्र में एक संघ-सम्मेलन का आयोजन कराया था। यह सम्मेलन केवल 11 अंगों का ही संकलन कर पाया; बारहवां अंग जिसमें 14 पूर्व थे, संकलित न हो सका। चूंकि स्थूलभद्र इन चौदह पूर्वो को भलीभांति जानते थे, इसलिए उन्होंने इनका वाचन किया और इस प्रकार वार भी तैयार हो गया । भद्रबाहु को यह बात भी पंसद नहीं आयी । सम्मेलन का मायोजन उनकी अनुपस्थिति में किया गया था, इसलिए उन्होंने बारहवें अंग तथा अन्य संकलित अंगों को भी मानने से इनकार कर दिया। इस प्रकार, अन्त में 83 ई० में दोनों सम्प्रदायों के बीच का अन्तर पक्का हो गया (न्ति के अनुसार 142 ई० में) 1 श्वेताम्बरों का मत है कि महावीर के बाद के आठवें उत्तराधिकारी भद्रबाहु ही नियमों में शिथिलता लाने के लिए जिम्मेवार हैं और श्वेताम्बर सम्प्रदाय का उदय 80 ई० में हुआ। ये दो सम्प्रदाय ठीक किस प्रकार अस्तित्व में आये, इसके बारे में एक रोचक कथा भी है। राजा की सेवा में एक व्यक्ति था । वह जब शिवभूति नाम से भिक्ष, बना, तो राजा ने उसे एक बढ़िया कम्बल भेंट किया। शिवभूति के गुरु ने उसे समझाया कि यह कम्बल उसके लिए फंदा बनता जा रहा है, इसलिए उसे इसे त्याग देना चाहिए। शिवभूति ने जब तदनुसार नहीं किया, तो गुरु ने एक दिन शिष्य की अनुपस्थिति में उस कम्बल को फाड़ डाला । शिवभूति को जब इस बात का पता चला तो उन्हें बड़ा क्रोध आया और उन्होंने घोषणा की कि वह उस एक वस्तु को भी अपने पास नहीं रख सकते जो उनके लिए महत्व की है, तो वह अपने पास कुछ भी नहीं रखेंगे और नग्न विचरण करेंगे...। और वहीं पर उसी समय उन्होंने दिगम्बरों के एक नये सम्प्रदाय की नींव डाली। " 22 इसी कथा से सम्बन्धित एक घटना यह भी है कि शिवभूति की बहन संघ में शामिल होना चाहती थी, परन्तु इसकी उसे अनुमति नहीं मिली । नग्न विचरण करना एक स्त्री के लिए अव्यावहारिक है, इसलिए शिवभूति ने अपनी बहन को बताया कि एक स्त्री के लिए भिक्ष ुणी बनना अथवा पुरुष जन्म लिये बिना मुक्ति पाना संभव नहीं है। इस कथा में ऐतिहासिक तथ्य हो या न हो, परन्तु दिगम्बरों ने संघ में स्त्रियों के प्रवेश पर सख्त पाबंदी लगा रखी है, इसलिए इस 3. देखिये, 'इन्साइक्लोपिडिया गॉफ रिलिजन एण्ड एमिक्स', खण्ड 12, पृ० 123
SR No.010094
Book TitleJain Darshan ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorS Gopalan, Gunakar Mule
PublisherWaili Eastern Ltd Delhi
Publication Year
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy