________________
श्वेताम्बर और दिगम्बर
जनों के दो प्रमुख सम्प्रदाय हैं : श्वेताम्बर और दिगम्बर । व्यापक दृष्टि से इन दोनों सम्प्रदायों के तात्विक चिंतन में कोई मौलिक अन्तर नहीं है। यह इसी से जाहिर है कि दोनों सम्प्रदाय तस्याधिगम सूत्र को एक अत्यन्त प्रामाणिक अन्य मानते हैं । इस ग्रन्थ के रचयिता संभवतः कोई श्वेताम्बर अनुयायी थे, परन्तु दिगम्बर भी इसे अपना एक प्रमुख ग्रन्थ मानते हैं। फिर भी, एक गैर-जैन जब दिगम्बरों के शुचिपूर्ण आचरण को देखता है, तो उसे लगता है कि श्वेताम्बरों नया दिगम्बरों में अवश्य ही कोई मौलिक भेद है । वस्तुतः दोनों में बहुत ही कम अन्तर है, यह बात प्रकरण के अन्त में स्पष्ट हो जायगी। इस संदर्भ में एक श्वेताम्बर अनुयायी का एक दिलचस्प कथन है : "जैनों में हम कैथोलिक' हैं. तो दिगम्बर 'प्यूरीटन'।" इससे दोनों की चरम सीमाएं, कम-से-कम दिगम्बरों के बाह्य स्वरूप के बारे में, स्पष्ट हो जाती हैं।
दिगम्बरों के लिए आकाश ही वस्त्र है (यहां दिक् का अर्थ है आकाश, और अम्बर का अर्थ है वस्त्र) । निर्वसन रहकर दुनिया को वे यही दिखाना चाहते थे कि उनका सम्बन्ध किसी वर्ग या कौम विशेष से न होकर सारी मानवता से है और इसलिए उन्होंने सम्बन्ध-सूचक इस अन्तिम विह्न वस्त्र का भी त्याग कर दिया है।
झिम्मेर ने धर्म के बारे में जो एक सामान्य बात कही है, उससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि दिगम्बरों ने निलिप्त बने रहने पर इतना बल क्यों दिया। वे लिखते हैं : "यह आशा की जाती है कि धर्म हमें अन्त में सांसारिक जीवन की आकांक्षाओं एवं विपदाओं और महत्त्वाकांक्षाओं एवं बाधाओं
से मुक्ति दिलायेगा क्योंकि धर्म आत्मा की मांग करता है। परन्तु धर्म एक : सामाजिक प्रपंच है, इसलिए यह बन्धन का एक साधन भी है...। जो कोई भी, : अपने समाज के जबरदस्त मोह-बन्धन से मुक्त होना चाहता है उसे धार्मिक : समाज से अपने को अलग करना होगा। इसके लिए एक पुरातन उपाय है
1. देखिये 'इन्साइक्लोपिडिया ऑफ रिलिजन एप एविक्स', व 22,५• 123