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पाय और महावीर होता है। परन्तु महावीर ने सामान्य गृहस्थ और बारह बलों को अंगीकार करते वाले मुहस्थ में भेद किया। इन दो प्रकार के गृहस्थों को क्रमशः श्रावक बोर श्रमणोपासक कहा गया है। श्रावक को जैन धर्म के प्रति केवल अपनी बवा तया भक्ति व्यक्त करनी होती थी; परन्तु धमणोपासक को पांच अनुव्रत तथा सात शीलवत अंगीकार करने होते थे, और इस प्रकार उसे अपनी यात्राओं तथा बाकाक्षाओं के बारे में कुछ 'सीमाएं" स्वीकार करनी होती थीं। पांच महावत मुनियों के लिए थे।
दोनों तीर्षकरों में ये सब असमानताएं होने पर भी हम देखते हैं कि उनके आचार धमों में बड़ी समानता थी और इससे इस मत का अनुमोदन होता है कि महावीर एक नये सम्प्रदाय के संस्थापक नहीं थे, उन्होंने केवल पहले के तीर्षकरों की परम्परा को सात्विक एवं श्रवा भाव से आगे बढ़ाने का ही कार्य किया है।