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________________ महावीर के पहले बैन धर्म नहीं है। इनमें रोचक घटनाएं हैं जिनमें सपा की कोंक, बैंकट, कुटक तवा बक्षिण कोटक प्रदेशों की यात्राओं की और इन प्रदेशों के लोगों द्वारा बैन धर्म अपनाने की बातें हैं।"पुराणों के ऐतिहासिक महत्व के बारे में बुलर लिखते हैं-"हमें विशेष रूप से यह स्वीकार करना होगा कि सबसे प्राचीन ही नहीं बल्कि बाद की कथानों में भी जिन व्यक्तियों का उल्लेख जाता है। ऐतिहासिक व्यक्ति हैं । यद्यपि अक्सर यह होता है कि ये व्यक्ति जिस काल के ये उस काल के न दरक्षाकर पहले के या बाद के दरवाये गये हैं और इनके बारे में बड़ी ही बेतुकी कथाएं कही गयी हैं। फिर भी ऐसी कोई घटना नहीं है जिसमें माये हुए किसी व्यक्ति के नाम के बारे में हम दावे के साथ यह कह सकें कि मह केवल कल्पना पर आधारित है। विपरीत, नये प्रकाश में भा रहे अभिलेखों, हस्तलेखों और ऐतिहासिक ग्रन्थों से पुराणों में वर्णित किसी-न-किसी व्यक्ति के वस्तुतः होने का समर्थन होता है। इसी प्रकार, पुराणों में दी गयी सभी यथार्थ तिथियों पर भी विशेष ध्यान देना जरूरी है। यदि एक-दूसरे से भिन्न दो पुराणों में समान तिथियां मिलती हैं, तो उन्हें बिना किसी संदेह के ऐतिहासिक दृष्टि से सत्य मान लेना चाहिए।" हमारे संवर्म में इस सबका आशय है कि कम-सेकम अन्तिम दो तीर्थंकरों के बारे में हमें, ऐतिहासिक प्रमाणों के अलावा, पुराणों से भी ऐतिहासिक उल्लेख मिलते हैं। ___ कोलक, स्टीवेन्सन, एडवर्ड थॉमस तथा माल खारपेंटिएर जैसे आधुनिक विद्वानों का भी यही मत है कि जैन धर्म महावीर से अधिक प्राचीन है। बारपेंटिएर लिखते हैं : "हमें ये दो बातें स्मरण रखनी चाहिए कि जैन धर्म महावीर से निश्चय ही प्राचीन है, क्योंकि उनके पहले के तीर्थकर, पाव एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे, और इसलिए मूल धर्म के आचार-विचार महावीर के काफी पहले अस्तित्व में आ गये होंगे।"" इसी प्रकार दासगुप्त लिखते हैं : "उत्तराज्यमन की इस कथा से कि पार्श्व के एक शिष्य और महावीर के एक शिष्य की मेंट हुई और पुराने जैन धर्म तथा महावीर के नये धर्म का मेल हुमा, यह स्पष्ट होता है कि पार्श्व एक ऐतिहासिक पुरुष थे। इन सभी बातों से सिद्ध हो जाता है कि जैन धर्म कम-से-कम महावीर से तो प्राचीन है ही। 15. वही, पृ. 164 16. यूजर मेवेन बेस् बन-मोन्चेस् हेमचन्द्र (जन-मुनि हेमचन्द्र के जीवन के बारे में), १.6, सी०० माह बारा ग्य.व, पूर्वो०१. 191-192 17. देखिये, 'उत्तराध्ययन-सूत्र' की भूमिका, ए. 21 18. पूॉ., बण्ड प्रथम, पु.169
SR No.010094
Book TitleJain Darshan ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorS Gopalan, Gunakar Mule
PublisherWaili Eastern Ltd Delhi
Publication Year
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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