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________________ . नवीन संवत् तिथियां अंकित कर दी है। यह जानकारी इतिहास की लुप्त कड़ियों को जोड़ने के लिए बड़ी उपयोगी है.""हमारे दृष्टिकोण से मह अभिलेख जैन धर्म के अतिप्राचीन उद्गम तथा कई तीर्थंकरों की ऋमिकता पर प्रकाश मलते हैं। कल्प- तथा अन्य बन जानकारी देते हैं कि मोक्ष प्राप्ति के पहले पार्श्वनाथ हजारीबाग जिले की एक पहाड़ी पर पहुंचे थे। यह स्थान 'पारसनाय पहाड़ी' के नाम से प्रसिद्ध है और पावं की ऐतिहासिकता के लिए एक प्रकार का स्मारकीय सबूत है। - जैन ग्रंथों में पार्श्व के बारे में तथा सामान्यतः जनों के बारे में जो कई उल्लेख मिलते हैं, उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि कम-से-कम पावं की ऐतिहासिकता से इनकार नहीं किया जा सकता और जैन धर्म महावीर से निश्चय ही अधिक प्राचीन था। इस संदर्भ में यहां हम कुछ उल्लेख प्रस्तुत करते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में पार्श्व की परम्परा के अनुयायी (पाश्र्वापत्यिक) केशी और महावीर के अनुयायी गौतम के मिलने की तथा दोनों के बीच हुए संवाद की जानकारी है।" यह संवाद दोनों परम्पराओं के आचार-विचार सम्बन्धी मतभेदों को लेकर हुआ था, और कहा गया है कि इसमें अन्त में केशी ने गौतम के मत को स्वीकार कर लिया। हम जानते हैं कि पावं ने चार धामों यानी महावतों का उपदेश दिया था और महावीर ने पांच यामों का।" विष्णु पुराण, महाभारत तथा मनुस्मृति जैसे प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में भी हमें जैनों के उल्लेख मिलते हैं। यहां हमें इस बात से सरोकार नहीं है कि जैनों का उल्लेख करनेवाले ये अन्य कितने प्राचीन है। हमारे लिए (और जैन धर्म की उत्पत्ति की खोजबीन करनेवाले विद्वानों के लिए) महत्त्व की बात यही है कि इनमें प्रथम तीबंकर ऋषभ के नाम के उल्लेख पाये जाते हैं। विष्णु पुराण के अपने अनुवाद में विल्सन लिखते हैं : "नाभिराज को रानी मरुदेवी से ऋषभ नाम के एक महामना पुत्र हुए। ऋषभ के सौ पुत्र थे, जिनमें भरत ज्येष्ठ थे। समभाव तथा कुशलता से राज्य करने के बाद और कई यज्ञ करने के बाद, ऋषभ ने वीर भरत को राज्य सौंप दिया-""भागवत पुराण पर एक टिप्पणी में विल्सन ने लिखा है : "इस ग्रन्थ में ऋषभ के तपश्चरण तथा उनके जीवन की अन्य घटनाओं के बारे में ऐसी जानकारी मिलती है जो अन्य पुराणों में उपलब्ध 9. 'भाकियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया रिपोर्ट स', बण्ड तीन, 1. 38-39 10. 168 11.XXIII.9 12. XXIII. 29 13.XXIII. 12 14. पु. 163
SR No.010094
Book TitleJain Darshan ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorS Gopalan, Gunakar Mule
PublisherWaili Eastern Ltd Delhi
Publication Year
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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