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महावीर के पहले जैन धर्म
जैन धर्म ग्रन्थों में हमें सभी चौबीस तीर्थकरों के नाम उसी क्रम से मिलते हैं. जिस क्रम से बे हुए हैं, और उनके जीवन काल के बारे में भी जानकारी मिलती है। मान्यता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभ 84,00,300 वर्ष जीवित रहे, बाईसवें ती कर नेमि 1000 वर्ष, तेईसवें तीर्थंकर पार्श्व 100 वर्ष और चौबीसवें तीर्थकर महावीर 72 वर्ष जीवित रहे ।
raft resist तथा अन्य कुछ विद्वान प्रथम तीर्थंकर ऋषभ को कुछ हद तक एक ऐतिहासिक व्यक्ति मानते हैं और जैन लोग अपनी प्राचीनतम धर्म-पुस्तक पूर्व को ऋषभ के समय की कृति मानते हैं, परन्तु इतिहास के विद्वान केवल अंतिम दो तीर्थकरों - पार्श्व व महावीर की ऐतिहासिकता सिद्ध कर पाते हैं। उदाहरण के लिए, लास्सेन पार्श्व के बारे में लिखते हैं: "ये जिन एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे, यह बात इस उल्लेख से प्रामाणित होती है कि पहले के तीर्थंकरों की तरह इनका जीवन-काल मानव के जीवन काल की संभावित सीमा के परे नहीं है ।"5 जब हम इस तथ्य पर गौर करते हैं कि भारत पर सिकंदर के हमले के समय से ही भारतीय इतिहास की तिथियों का निर्धारण संभव हुआ है और पार्श्व के पहले के काल के बारे में इतिहासज्ञों को प्रामाणिक जानकारी नहीं मिली है, तो केवल पार्श्व व महाबीर की ऐतिहासिकता को ही स्वीकार किया जा सकता है ।
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यद्यपि पाप के बारे में भी प्रत्यक्ष ऐतिहासिक उल्लेख नहीं मिले हैं, फिर भी कुछ उल्लेख हैं । मथुरा से कुछ ऐसे अभिलेख मिले हैं जिनमें ऋषभ तथा कुछ अन्य तीर्थकरों की पूजा-अर्चना के उल्लेख हैं । इनमें से महत्व के तीन अभिलेखों का आशय है : ( 1 ) ऋषभदेव प्रसन्न हो; (2) महंतों की अर्चना; ' ( 3 ) अर्हत
मान की अर्चना ! 8 इनके महत्त्व के बारे में कनिंघम ने लिखा है : "इन अभिलेखों से प्राप्त जानकारी प्राचीन भारत के इतिहास के लिए अत्यन्त महत्त्व की है। सबका प्राय: एक ही आशय है कुछ व्यक्तियों द्वारा धर्म की अभिवृद्धि के लिए और उनके तथा उनके माता-पिता के कल्याण के लिए दिये गये दानों को लेखबद्ध करना । परन्तु इन अभिलेखों में सिर्फ इतनी ही जानकारी रही होती तो इनका कोई विशेष महत्व नहीं होता । वस्तुस्थिति यह है कि मथुरा के इन लेखों में से अधिकांश में दाताओं ने तत्कालीन शासकों के नाम तथा दान के समय की
3. एक 'पूर्व' वर्ष को 7,05,60,00,00,00,000 वर्षों के बराबर माना जाता है
4. 'कल्प - सूख', 227, 182, 168 व 147
5. इ० ए०, II, पृ० 261
6. एपिग्राफिका 'इडिका, I. 386, अभिलेख VIII
7. वही, I, 383, अभि० III
8. वही, I, 396, अभि० VIII