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________________ मणुव्रत आंदोलन यहां अहिंसा तथा अपरिग्रह के जैनमत के प्रति उठायी जानेवाली आपत्तियों पर विचार करना उपयोगी होगा, क्योंकि इससे हमें अणुव्रत आंदोलन को समझने में सुविधा होगी। यह जैनमत कि अहिंसा अंततोगत्वा जीवन के सभी क्षेत्रों में फँसे और अन्य सभी सदाचारों को प्रकाशित करे, इसके अनुयायियों के लिए काफी दुष्कर हो जाता है। थोड़ा विचार करने से स्पष्ट हो जाता है कि किसी भी नैतिक प्रणाली में किसी एक तत्व का केन्द्र में होन तथा सबका संयोजक एवं नियंत्रक होना परमावश्यक है । परन्तु अहिंसा के तत्त्व को जो महत्त्व दिया गया है, वह किसी एक को 'संयोजक' बनाने के उद्देश्य से नहीं है। इसका कारण अधिक गहरा है, और यह चेतना - सातत्य के जैन सिद्धांत को स्मरण करने से समझ में आ सकता है। संक्षेप में, सिद्धांत यह है कि यदि मुक्ति की ( अजीव के बन्धन से मुक्त होने की दिशा में विविध जीव विकास की विभिन्न अवस्थाओं में हैं, तो किसी भी एक जीव को चाहे वह किसी भी उच्च अवस्था में हो - अधिकार नहीं कि वह किसी भी अन्य जीव - चाहे वह कितनी भी निम्न अवस्था में क्यों न हो के आध्यात्मिक विकास में बाधक बने। जैन सिद्धांत में जीवन के प्रति श्रद्धा की भावना को स्पष्ट रूप से समझा गया है और उसका व्यवस्थित निरूपण किया गया है। - 173 अहिंसा के साथ अपरिग्रह पर जो बल दिया गया है, उसकी और भी अधिक आलोचना की गयी है । इसका आधार यह है कि अपरिग्रह के नियम का कड़ाई से पालन इतना अधिक आवास्तविक है कि अनुयायियों के लिए इसके पालन का कोई अर्थ नहीं रह जाता। जैन दार्शनिकों ने बन्धन की स्थिति पर गहन विचार करके ही सुस्पष्ट भाषा में कड़े नियमों का प्रतिपादन किया है। परन्तु इसमें उन्होंने जनसाधारण की क्षमता का भी ध्यान रखा है। कड़ाई से पालन के लिए जिन पांच व्रतों-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह - का विधान है, उन्हें महाबत कहा गया है। परन्तु अक्सर यह तथ्य भुला दिया जाता है कि जैन धर्म में पांच अणुव्रतों का भी विधान है। ये अणुव्रत उन गृहस्थों के लिए हैं जिन्होंने गृहत्याग नहीं किया है; उन्हें इन व्रतों का पालन भावना रूप में करना होता है । इस प्रकार, अणुव्रत स्वरूप में महाव्रतों से भिन्न नहीं है, परन्तु गृहस्थ की सीमाओं का ध्यान रखते हुए उनके पालन में ढील दी गयी है। गृहस्थों के लिए अणुव्रतों का विधान जैन दार्शनिकों के इम मनोवैज्ञानिक निरीक्षण पर आधारित है कि, गृहस्थ की समाज के अन्य सदस्यों - घर के या बाहर के व्यक्तियों के प्रति जो जिम्मेदारियां होती हैं, उनमें इन व्रतों का कड़ाई से पालन संभव नहीं है। अणुव्रतों के पालन पर आधारित यह अणुव्रत आंदोलन इस बात को भी
SR No.010094
Book TitleJain Darshan ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorS Gopalan, Gunakar Mule
PublisherWaili Eastern Ltd Delhi
Publication Year
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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