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वव्रत आंदोलन
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जाता है उसका अर्थ यह नहीं है कि धर्म समाज की उपेक्षा करता है या संसार के भविष्य के बारे में चितित नहीं है, बल्कि यह धारणा है कि व्यक्ति की शुद्धि से ही अन्त में समाज की शुद्धि होती है। धर्म के बारे में इस मान्यता से स्पष्ट हो. जाता है कि अणुव्रत आंदोलन का दृष्टिकोण एकांगी नहीं है।
जिस समय इस आंदोलन की शुरूआत की गयी थी, उस समय आचार्य तुलसी को भी एक धर्म परायण दार्शनिक एवं पंथ विशेष का नेता माना जाता था। चूंकि इस आंदोलन का नामकरण जैन परम्परा के अनुरूप हुआ था, इसलिए समझा गया था कि आचार्य तुलसी कुछ नये रूप में एक धार्मिक संप्रदाय का ही प्रतिपादन कर रहे हैं। इस आंदोलन के लिए ऐसे अन्य नाम के बारे में भी विचार किया गया जो एक विशिष्ट पर म्परा – फिर वह परम्परा कितनी भी समृद्ध क्यों न हो से जनित संकुचित दृष्टिकोण का द्योतक न हो; परन्तु स्पष्ट हुआ कि अन्य कोई भी नाम इस आन्दोलन की महत्ता को ठीक से व्यक्त नहीं कर सकता । व्यक्ति के पुननिर्माण के इस दर्शन को एक भव्य नाम प्रदान करने के प्रयत्न में न उलझकर आचार्य इस आंदोलन को सक्रियता प्रदान करना चाहते थे । अणुव्रत शब्द को इस मान्यता के आधार पर उचित माना गया कि छोटे व्रत बड़े परिवर्तन लाते हैं। आरंभ में इस आंदोलन को अणुव्रत संघ का नाम दिया गया था; बाद में इसे अणुव्रत आंदोलन में बदल दिया गया। मूलत: यह आंदोलन नौ-विषयी कार्यक्रम तथा तेरह-विषयी व्यवस्था पर आधारित था जिन्हें पच्चीस हजार लोगों ने अपनाकर अमल में लाया है।' नौ-विषयी कार्यक्रम था : (1) आत्महत्या के बारे में न सोचना, (2) मदिरा तथा अन्य मादक द्रव्यों का सेवन न करना, (3) मांस तथा अंडों का सेवन न करना, (4) कोई बड़ी चोरी न करना, (5) जुआ न खेलना, ( 6 ) कोई अनैतिक तथा अप्राकृतिक संभोग न करना, (7) झूठे मामले तथा असत्य के पक्ष में साक्ष्य न देना, (8) वस्तुओं में मिलावट न करना और नकली वस्तुओं को असली बताकर न बेचना, ( 9 ) माप-तौल में बेईमानी न करना । तेरह-विषयी व्यवस्था थी : ( 1 ) चलतेफिरते निरपराध प्राणियों की हत्या न करना, ( 2 ) आत्महत्या न करना, (3) मदिरापान न करना, (4) मांस सेवन न करना, ( 5 ) चोरी न करना, ( 6 ) जुआ न खेलना, (7) झूठी साक्ष्य न देना, ( 8 ) दुष्ट भावना या प्रलोभन के वशीभूत होकर वस्तुओं या मकानों को आग न लगाना, (9) अनैतिक तथा अप्राकृतिक संभोग न करना, ( 10 ) वेश्या के पास न जाना, ( 11 ) धूम्रपान न करना और मादक द्रव्यों का सेवन न करना, (12) रात्रि को भोजन न करना, और ( 13 ) साधुओं के लिए भोजन न बनाना ।
2. देखिये, मुनि नथमल, 'आचार्य तुलसी हिक नाईक एण्ड फिलॉसफी (गुरुद anfiger er, 1968), g. 67