________________
133 सामान्य-विशेष के सम्मिश्रण मे सामान्य गुणों का चयन किया जा सकता है। वर्गीकरण की किसी भी प्रणाली का यही मूलाधार होता है कि विभिन्न व्यक्तियों या सत्ताओं में कुछ समानताएं भी होती हैं। संग्रह नय का सम्बन्ध इन्हीं वर्गविशेषताओं से है।
हमें इस नय को जैन चिंतन का एक स्वयं-विरोधी तत्त्व समझने की भूल नहीं करनी चाहिए । शानमीमांसीय संदर्भ में हमने पहले बताया है कि सामान्य के बिना विशेष और विशेष के बिना सामान्य निरर्थक है, तो यह तर्क हो सकता है कि, अब यहां जैन दार्शनिक विशेष के विरोध में सामान्य को अधिक महत्त्व दे रहे हैं। परन्तु यहाँ सामान्य को महत्त्व दिये जाने का कारण यह है कि, कुछ संदर्भो में एक या दूसरे का चयन करना बड़ा उपयोगी होता है । जैन दार्शनिक इस तथ्य से भलीभांति परिचित थे, इसीलिए उन्होंने सांख्य और अद्वैत में संग्रहमास के दोष दिखलाये हैं। यह तर्कवाक्य कि "सब सत् है", पूर्णतः सार्थक है, यदि इसका यह अर्थ न हो कि 'सत्' के परिपूरक 'असत्' का, जिसे मामान्य के प्रत्याख्यान के समय पार्श्व में रखा जाता है, निवेध किया गया है।
व्यवहार नय
व्यवहार नय का सम्बन्ध पदार्थों के विशेष गुणों से होता है। परन्तु इस तथ्य को नहीं भुला दिया जाता कि ये विशेष गुण सामान्य गुणों से सम्बन्धित रहते हैं । अर्थात्, विशेष गुणों की कल्पना स्वतंत्र रूप से नहीं की जाती। उदाहरणार्थ, जब हम कहते हैं कि "पदार्थ का अस्तित्व व पर्याय है", तो यहां हम पदार्य के विशेष गुणों का परिचय देते हैं। तात्पर्य यह कि, जब हम पदार्थ के कुछ विशिष्ट गुणों को निर्धारित करते हैं, तो वे विशिष्ट गुण सारतत्त्व के रूप में पदार्थ के ही द्योतक होते हैं । अर्थात्, जब विशेष का उल्लेख होता है, तो सामान्य की उपेक्षा नहीं होती।
व्यवहारनयभास का दोष तब होता है जब सामान्य की उपेक्षा करके आनुमाविकता पर विशेष बल दिया जाता है। जैनों के अनुसार, चार्वाकों ने अनुभवजन्य ज्ञान को सर्वाधिक महत्त्व देकर यही गलती की है। चार्वाकों ने केवल इन्द्रियजन्य ज्ञान को ही स्वीकार किया है।
ऊपर जिन तीन नयों पर विचार किया गया है, वे वस्तुओं में तादात्म्य की ही खोज करते हैं। व्यापक रूप से, ये तीन नय प्रतिपाद्य वस्तुओं की द्रव्यात्मकता पर विचार करते हैं। इसलिए इन्हें बार्षिक मय कहा गया है । आगे जिन चार नयों का विवेचन करना है, उनमें वस्तुओं के पर्यायों पर विचार किया गया है। इसलिए उन्हें पर्यापारिक नय कहा गया है।