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जैन दर्शन
तरफ ईश्वर और दूसरी तरफ चित् तथा अचित् के बीच का सम्बन्ध उसी प्रकार का है, जिस प्रकार किसी वस्तु और उसके गुणों में होता है। वस्तु से पृथक् गुणों का कोई महत्त्व नहीं होता, परन्तु फिर भी वे ईश्वर से उसी प्रकार भिन्न हैं। जिस प्रकार शरीर आत्मा से भिन्न होता है। इस प्रकार, परम ब्रह्म ऐसी जटिल समग्रता है जिसमें एक विश्वात्मा और उसके आश्रित जगत और जोब - समाहित हैं। पी० एन० श्रीनिवासचारी विशिष्टाद्वैत के विभेद सम्बन्धी दृष्टिhtr का बौद्ध तथा अद्वैत मतों से अन्तर स्पष्ट करते हुए लिखते हैं: "वस्तु-रहित गुणका बौद्ध मत गुण-रहित वस्तु के अद्वैत मत के विपरीत है, परन्तु इन परम मतों का सामंजस्य ब्रह्म के विशेषण के रूप में विशिष्टाद्वैत के जगत सम्बन्धी सिद्धान्त में हो जाता है ।'
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वैशेषिक मत : विभेद या विशेष पर बल दिये जाने के बारे में इस दर्शन की ख्याति है, और महत्त्व का तथ्य यह है कि विशेष को वास्तविकता के छह तत्त्वों में से एक माना गया है। ये छह तत्त्व हैं : द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय। चूंकि इस दर्शन का नामकरण सत्ता-मीमांमीय तत्त्व विशेष के आधार पर हुआ है, इसलिए स्पष्ट है कि विशेष को अन्य तत्त्वों के समान नहीं माना गया है, फिर चाहे तत्त्वों की सूची में इसके समावेश का जो भी महत्त्व हो । गार्बे ने लिखा है : "पांचवें तत्त्व विशेष को वैशेषिक में महत्व दिये जाने का कारण यह है कि परमाणुओं के विभेद ही जगत की सृष्टि संभव बनाते हैं । इसीलिए वैशेषिक का नामकरण विभेदार्थी शब्द विशेष के आधार पर हुआ है ।"6
वैशेषिक की मूलभूत मान्यता के अनुसार, किसी भी वास्तविक सत्ता को उसमें अन्तर्निहित विशेष के बिना समझा नहीं जा सकता । विशेष के कारण ही किसी एक सत्ता को शेष सभी सत्ताओं से पृथक् करके पहचाना जा सकता है। वैशेषिक की समवाय की धारणा इसे बौद्ध दर्शन से स्पष्ट करती है। बौद्ध दर्शन 'पूर्ण अन्तर' को स्वीकार करता है। दोनों मतों के बीच का यह अंतर बौद्धों के विशिष्ट स्वलक्षणवाद से स्पष्ट । समवाय एक संश्लेषणात्मक तत्त्व है, और सम्बद्ध वस्तुओं के बीच में भेद पैदा कराने में भागीदार नहीं है । इस प्रकार, अन्तर के महत्त्व को कायम रखा जाता है, और तादात्म्य को दूर रखा जाता है।
हृतमत: इस मत में भेद या अन्तर पर जो बल दिया गया है, उसका कारण है स्वतंत्र तथा परतंत्र तत्त्वों का भेद । केवल ईश्वर ही स्वतंत्र सत्ता है
4. 'विशिष्टाद्वैत', पू० 230
5. वैशेषिक पर लेख 'इन्साइक्लोपिडिया ऑफ रिलिजन एण्ड एथिक्स' खण्ड 12, पृ० 570